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________________ ( १७४ ) रहे, एक दिन धरणेन्द्र ने प्रभु की भक्ति में दोनों को रक्त जान कर संतुष्ट होकर बैनाड्य पर्वत पर दोनों को राज्य दिया और विद्याये दी उन दोनों का परिवार भी साथ गया दक्षिण श्रेणि में नमि और उत्तर श्रेणि में विनमि रहा उस दिन से विद्याधरों का वंश चला भरत महाराजा दोनों का दादा था उसको पूछ कर दोनों ने इंद्र की सहाय से दक्षिण में ५० और उत्तर में ६० नगर बसाये । प्रभु का प्रथम पारणा । प्रभु विनीता से दीक्षा लेकर फिरते २ हस्तिनापुर गये वहां पर बाहुबालिका पुत्र सोम प्रभा राज्य करता था उसका पुत्र श्रेयांस कुमार ने ऋषभदेव की माधुप में देखे और जाति स्मरण ज्ञान शुभ भाव से हो जाने से पूर्व भव का संबंध देख कर साधु को कैसा आहार देना वो जान कर वैशाख मुद ३ अक्षय तृतीया के दिन इक्षु (शेरडी) के रस के बडे जो कोई भेंट कर गया था उसका दान प्रभु को दिया प्रभु ने भी हाथ में रस लेकर पान किया उस दिन से माधु को कैसा आहार देना वो लोगों ने श्रेयांस कुमार से पूछ लिया और प्रभु को सर्वत्र शुद्धाहार दान मिलने लगा (श्रेयांस कुमार को लोगों ने पूछा कि आपने कैसे यह बात जानी तत्र श्रेयांसकुमार ने लोगों को कहा कि आठ भव का हमारे सम्बन्ध है ( १ ) ललिनांग नाम के ईशान देव लोग में प्रभु देव थे मैं निर्नाभिका नामकी स्वयं प्रभा उनकी देवी थी. ( २ ) पूर्व महा विदेह में बञ्च जंच गजा थे मैं श्रीमनी नामकी रानी थी ( ३ ) उत्तर कुरु में युगल युगली हुए ( ४ ) सौधर्म देवलोक में दोनों मित्र देव हुए ( ५ ) अपर विदेह में वैद्यपुत्र और में उनका मित्र जीर्ण शेठ का पुत्र केशव था ( ६ ) मथु पुंडरीकिणी नगरी में वज्रनाभ और मैं उनका सारथी था (७) सर्वार्थ सिद्ध विमान में दोनों देव ( ८ ) प्रभु ऋषभदेव और में उनका प्रपौत्र हुआ किन्तु मुझे जानि स्मरण उनका साधु वेप देखने से हुआ तब मैं ने पूर्व में साधुपणा लेकर गोचरी ली थी वो याद आने से और प्रभु को पिछानने से उत्तम सुपात्र जानकर निर्दोष आहार दिया ). प्रभुंने पूर्व भव में बारह पहर तक बैल का मुंह बंधवायाया उस पाप से इतने दिन शुद्धाहार न मिला.
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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