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________________ (१७३) दीवाह, मंघ, सुघोप, विश्व, वराह, सुसेन. सेनापति, कुंजरवल, जयदेव, नागदत्त, काश्यप, बल, वार, शुभमति सुमति, पद्मनाभ, सिंह, सुजाति, संजय, सुनाम मरुदेव चित्तहर, सरवर. द्रढरथ, प्रभंजन. देशों के थोडेनाम। अंग, वंग, कलिंग, गोड, चौर, करणाट, लाट, सौराष्ट्र . काश्मीर, मी पौर, आभर, चीन, महाचीन, गुर्जर, बंगाल, श्रीमाल, नेपाल, जहाल, कौशल, मालव, सिंहल, मरुस्थल. __ इस तरह सो पुत्रों को राज्य दिया तब लोकांतिक देवों ने विज्ञप्ति की कि आप धर्म तीर्थ मवर्नावे । प्रभुने पहिले से ही अपना दीक्षा काल अवधि ज्ञान से जान लिया था इसलिये धन वगैरह उत्तम वस्तुओं का सम्बंध छोड़कर पुत्र पौत्रों को हिस्से बांट दिये और वार्पिक दान देना शरु किया और चैत्र वदीके रोज दिन के तीसरे पहर में सुदंसणा पालखी में बैठकर विनीता नगरी से वहार आकर सिद्धार्थ वन में अशोक वर पादप के नीचे पालखी से उतर कर सब अलंकार छोड़कर चउविहार छठ की तपस्या में चंद्र नक्षत्र पूर्वापाढा में उग्र भोग राजन्य क्षत्रियों के ४००० पुरुपों के साथ एक देव दृप्य वन ग्रहण मुंड होकर साधु हुए. (चार मुठी लोच होने याद थोड़े बाल याकी रहगये वो इन्द्र ने सुशोभित देखकर विज्ञप्ति की कि आप रखे प्रभु ने उसकी विज्ञप्ति सुनकर उन घालों को रहने दिये) प्रभु ने दीक्षा ली परन्तु भिक्षा लेने को गये तब कोई भी भिक्षा देना नहीं जानता था और हाथी घोड़ा कन्या धन भेट करे वो प्रभु लवे नहीं न उत्तर देते थे जिससे ४००० दीक्षितों ने भूख के दुःख का निवारण प्रभु से पृद्धा उत्तर न मिलने से घर जाने को अच्छा न समझा तब गंगा के किनारे फल फूल खाने वाले तापस बने परन्तु अन्तराय कर्म को हटाने को प्रभु नो सपर्य होकर विचरते ही रहे. ___ कल गहा कद्र के नमि विनमि पुत्रों को ऋपभंटव ने पुत्र मान थे वे दोनों राज्य बांटने के वक्त निदेश गये थे जिससे जब आये नर प्रभु को नहीं देखकर उनके पीछे पीछे फिरे और प्रभु को साधु अवस्था में मॉन दैग्नकर सेवा करने
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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