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________________ (१५९) . ५४ दिन तक शरीर माह छोड़कर नमिनाथ ने उपसर्ग परिसह सहन किये और.५५ वां दिवस में आसोज वदी )) के रोज पिछले पहर में गिरिनार पर्वत पर बैतस वृक्ष की नीच तेले का चउविहार तप में चन्द्र नक्षत्र चित्रा में शुक्ल ध्यान के दूसरे भाग में केवल ज्ञान केवल दर्शन हुआ और सर्वज्ञ होकर विचरने लगे. ___ उद्यान रक्षक से कृष्ण वासुदेव को ज्ञात हुश्रा, प्रभु को वांदने को आये राजिमनी भी आई उस समय प्रभु के उदेपश सेवरदत्त वगैरह दो हजार राजाओं ने दीक्षा ली राजिमती का अधिक स्नेह देखकर कृष्ण वासुदेव ने प्रभुसे कारण पूछा. प्रभुने कहा कि नवभव से हमारा स्नेह चला आता है. - (१) धन नाम का मैं राजपुत्र था और वो मेरी भार्या धनवनी थी ( २ ) सौधर्म देवलोक में देव देवी थे, (३) मैं चित्रगति विद्याधर और वा रत्नवती नामकी भार्या थी (४) महेन्द्र देवलोक में दोनों देव हुए (५) अपराजित राजा और प्रियतमा भार्या हुई (६) पारण देवलोक में दोनों देव हुए (७) में शंखराजा और वो यशोमति रानी थी (८) अपराजित अनुत्तर विमान में दोनों देव हुए (8) में नेमिनाथ और वो राजिमती हुई इस लिय उसका प्रेम है. सब वंदनव र चले गये, दूसरी वक्त नेमिनाथ विहार कर सहसाम्र वन में आये तब उस वक्त बोध मुनकर राजिमती और नेमिनाथ के बंधु रहनेमि ने भी दीनाली. साधु साध्वी विहार कर गए एक समय रहनेमि गिरिनार की गुफा में ध्यान करने थे. और राजिमती नेमिनाथ को वंदन कर पिछी आती थीं वर्षा पाने से कपड़े सुखाने को मर्यादा से गुफा के भीतर गई अंधेरे में उसको कुछ न दीखा परन्तु रहनेमि ने देखा मुंदरता से मुग्ध होकर प्रार्थना करने लगा कि अपन यौवन वयका दोनों लाभ ले ! राजिमती स्थिर चित्त रखकर गुह्य भाग को गोदकर धैर्यता से पोलो अगंधन जातिका सर्प भी विषयमन कर फीर मुंहमें नहीं लेना तो अपन मनुष्य होकर कैसे भोगको त्यागकर ग्रहण करेंगे. रहनेमि समझ कर नेमिनाथ के पास जाकर मायश्चित लेकर तपकर केवल जान पाकर मुक्ति गये. राजिमनी भी केवल ज्ञान पाकर मुक्ति गये. अरहयो णं अरिहनेमिस्स अट्ठारस गणा अद्यारस गएहरा हुत्था ॥ ११५ ॥
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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