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________________ (१५६) णं सावणमुद्धस्स छट्ठीपक्खे णं पुबराहकालसमर्सि उत्तर'कुराए सीयाए सदेवमणु प्रामुराए परिमाए अणुगम्ममाणमग्गे जाव वारवईए नगरीए मझमझणं निग्गच्छड़, नि गच्छित्वा जेणेव रेवयए उजाणे, तणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे सीयं ठावेई, ठावित्ता सीयाश्रो. पचोरहइ, पचोरुहिता सयमेव ग्राभरणमल्लालंकारं ओमयड, सयमेव पंचमट्रियं लोयं करेड, करिता छद्रण भत्तणं अपाणएणं चित्तानक्खत्तेणं जोगमुवागरणं एगं देवदृममादाय एगणं पुरिससहस्सेणं सद्धिं मुंडे भवित्ता प्रागारात्री प्रणगारियं पबहए ।। १७३ ॥ दत्त अरिष्टनपि प्रभु न ३०० वर्ष ब्रह्म चर्यावस्था में निर्वाह किये, और वार्षिक दान देकर दीना श्रावण मुदीपको उत्तर कुरुशित्रिका में बैठकर द्वारिका नगरी से निकल कर गिरिनार पर्वन पर सहयाम्र वनमें जाकर अशोक वृक्ष नीचे पालखी से उतर श्राभूपण छोडकर चित्रा नक्षत्र में चंद्रयोग आनेपर देवस्य वन इंद्र पाम मे लेकर १००० पुरुषों के साथ छठ का चोविहार नपमें पंच मुष्टि लांच कर साधु हुए. ___ अरहा णं अरिट्ठनेमी चउपन्नं राइंदियाई निचं वोस?काए चियत्तदेहे, तं चेव सब्बं जाव पणपन्नगस्स राइंदियस्स अंतरा वट्ठमाणस्स जे से वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे प्रासोयवहुले, तस्स णं आसोयवहुलस्स पन्नरसीपक्खे णं दिवसस्स पच्छिमे भाए उजितसेलसिहरे वेडसपायबस्स अहे छतुणं भत्तेणं अपाणएणं चित्तानक्खत्तेणं जोगमुवागएणं भापंतरियाए वट्टमाणस्स जार अणंते अणुत्तरे-जाव सब्बलोए सबजीवाएं भावे जाणमाणे पासमाण विहरई ।। १७४ ।।
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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