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________________ स्लीयों द्वारा नेमिनाथ को संसार में पड़ने की योजना की. सुंदरियों ने सुगंषि मलसे फुलोकी दृष्ठिसे श्रृंगार रस के वचनों से मोहित करना चाहा. किन्तु स.. त्यभामा रुक्मणी वगैरह अनेक रमणीयें मुग्ध हुई परन्तु नेमिनाथ को रोममें भी मोह नहीं हुआ किन्तु संसार में मोह कितना दुःख पाणीओं को देता है वोही विचार कर प्रभु शांत और मौन रहे. मौन देखकर सुंदरीयों ने कहा कि नेमिनाथ शरम से बोलते नहीं है. इच्छा भीतर में जरूर है. कृष्णजी ने शिवादेवी की रजा लेकर उग्रसेन राजा की पुत्री राजिमती जो योग्य अवस्था में थी उसके साथ लग्न की तैयारी की. क्राष्टिक नाम के निमित्तिक से अच्छा दिन पूछा तब वो पोला कि चौमासा में अच्छे कार्य नहीं करने उस से स्यादी भी नहीं करनी निमित्तिक को कहा कि देरका काम नहीं तव उसने श्रावण सुदी ६ का दिन बताया, विवार के दिन सब तैयारी कर परिवार के साथ नेमिनाथ भी चले. जब उग्रसेन के घर समीप आये तब बाड़ो में पशुओं का पुकार सुन कर नेमिनाथ को करुणा आई सारथी से पूछा कि ये सब क्यों पूरे हैं ? सारथी ने वात सुनाई के आपके लिये है. नेमिनाथ ने विचारा कि अहो ! सनुष्यों की क्या दुर्दशा है कि विचारे निर्दोष प्राणीयों को अपनी अल्प मानी हुई मौज (निव्हा स्वाद ) के खातिर उनकी अमूल्य जींदगी का नाश करते हैं ! मैं उसका निमित्त कारण क्यों होउ १ ऐसा विचार कर रथ पिछा लौटाया, सखीयों के साथ राजिमती हास्य करती थी और श्वसुर पन के अडवर को देख रही थी और मनमें सुख वैभव के तरंग उठारही थी उसी समय वात सुनी कि वर राजा का रथ पिछा लोटा है और पशुओं को मुक्त कराये है परके माता पिता और कन्या के माता पिता ने बहुत प्रार्थना नेमिनाथ को की कि जीव हिंसा नहीं होगी आप आने वाले स्वजनों की हासीं न करावे ! समझ कर स्यादी करलो ! किन्तु उपयोग देकर शान से अपनी दीचा का समय नजदीक जानकर और लोकांतिकं देवों की प्रार्थना से मुक्ति रमणी को चित्त में स्थापित कर सब रिस्तदारों को वोध देने लगे राजिमनी भी उदास होकर प्रार्थना करने लगी परंतु प्रभु के वचन से सबको शांति हुई और राजिमती रागदशा को छोड चोली नाथ ! हाय से नहीं मिला परन्तु दीक्षा समय शीर पर वो हाथ जरूर रहेगा (अर्थात् दीक्षा लेने के समय आपका हाथ का वामक्षेप मेरे मस्तक पर पडंगा) जेसे वासाएं पढमे मासे दुचे एक्वे सावणसुद्धे. तस्म
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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