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________________ (१३०) मागकरण, सर्वार्थ सिद्ध मुहर्स चन्द्र नक्षत्र स्वाति का योग आने पर भगवान् सय दुःखों से मुक्त हुए. . जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सबदुक्खापहीणे सा णं रयणी बहुहिं देवेहिं देवीहिं य श्रोवयमाणेहि य उप्पयमाणेहि य उज्जोविया प्रावि हुत्था।।१२।। जं रयणि च समणे भगवं महावीर कालंगए जाव सबदुक्खप्पहीणे, सा रयणी बहुहि देवेहि य देवीहि य प्रोवयमाणेहिं उप्पयमाणेहिं य उप्पिंजलगभूमाणश्रा कहकहगभूषा प्रावि दुस्था ।। १२५ ।। ___महावीर प्रभु के निर्माण समय देव देवीए बहुत से आने से प्रकाश होगया और देव देवी के आने जाने से आकाश में अव्यक्त (गों घाट) अवाज बड़े जोर से होगया. जं रणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव . सम्बदुक्खप्पहीणे, तं रयाणि च णं जिस्टस गोत्रमस्स इंदभूहस्स अणगारस्त अशवासिस्त नायएं पिज्जयंधणे युच्छिन्ने, अणंत अणुत्तरे जाव केवलवरनापदंसणे समुप्पन्ने ॥१२६।। चीर प्रभु का निर्वाण बाद शीघ्र गौतम इन्द्र भूतिजी महाराज को केवल ज्ञान केवल दर्शन हुआ. उसकी विशेष वात. धीर प्रभुने अपने निर्वाण के थोड़े समय पहिले देव शमा ब्राह्मण को पनि घोध करने के लिये भेजे थे वे पीछे आते थे उस समय रास्ते में देव मनुष्यों दाग प्रभु का निर्वाण की बात सुनकर पूर्व प्रेम और गुणानुराग से वियोग का खद हुया और ससार में वीर प्रभु के विना भव्यात्माओं का और मंग शंका समापान कौन करेगा वगैरह याद करने लगे परन्तु एकन्य भावना से आत्म परप
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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