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________________ (१३८) चामासे वैशाली नगरी में वाणिज्य गांव में बारह चौमासे राजग्रही नगरी नालंदा पाड़ा में १४ चौमाम मिथिला नगरी में छ चीमासे भद्रिका नगरी में दो चौमास आलंमिका नगरी में एक चौमासा श्रावस्ति नगरी में एक चौमासा वज्र भूमि में एक चोमामा एक चोमासा अंतका पावापुरी में हस्तिपाल राजा की कचहरी (मुनमियों को बैठने की पुगणी जगह में किया, तत्थ णं जे मे पावाए मज्झिमाए हत्यिवालस्स रणो रज्जुगमभाए अपच्छिम अंतरावासं वासावास उवागए॥१२२।। • तस्म णं अंतरावासस्म जे से वासाणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे कत्तिअवहुले, तस्म णं कत्तियबहुलस्स पन्नरसीपक्खणं जा सा चरमा रयणी, तं रयणि च णं समणे भगवं महावीरे कालगए विक्कंते समुन्जाए छिन्नजाइजरामरणवं. धणे मिद्धे बुद्धे मत्त अंतगडे परिनिन्बुड़े सव्वदुक्खणहीणे, चंदे नामे से दुचे संवच्छरे पीइवद्धणे मासे नंदिवद्धणे पक्खे अग्गिवसे नाम से दिवझे उनसमित्ति पवुच्चड़, देवाएंदा नाम सा रयणी निरतित्ति पवुच्चड़, अच्चे लवे मुहृत्ते पाणु थोवे सिद्ध नागे करणे सबट्ठसिद्ध मुहुत्ते साइणा नरखत्तणं जोगमुवागए एं कालगए विइंक्वते जाव सबढुक्खप्पहीणे ॥१२३॥ | जिस समय प्रभु आखिर चौमासा करने को पावापुर आय तब वर्षाऋतु के चौथपाग के सानवा पक्ष अर्थात् कार्तिक बढ) चरमा नामकी रात्रि में में भगवान् महावीर काल धर्म पाये, मंसार से निवृत हुए, जन्म जरा मरण को छड़ने वाले हुए, मिद्ध बुद्ध, मुक्त अंतकृत् परि निवृत, और सब दुःख को काटने वाले हुए. चन्द्र नाम का इना संवत्सर था, प्रीनि वर्धन नाम का महिना, नंदिवर्धन पक्ष, अग्नि बंश्य नाम का दिन, उपशम दूसरा नाम था, देवानंदा नामकी रात्रि, विनि दृमरा नाम था, अचलब था, प्राण मुहूर्त, सिद्ध नामका स्नांक,
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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