SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२८ ) हारेणं अणुत्तरेणं वीरिएणं श्रणुत्तरेणं श्रज्जवेणं श्रणुत्तरेण मद्दवेणं अणुत्तरेणं लाघवेणं अतरार खेतीए अत्तराए गुत्ती अणुत्तराए तुट्ठीए अगुत्तरेणं सच संजमतवसुचरित्रफलनिव्वाणमग्गेणं. अप्पाणं भावमाणस्स दुवालस संवच्छराई विइकताई तेरसमस्त संवच्छरस्त अंतरा वट्टमाणस्स जे से गिम्हाणं दुच्चे मासे चउत्थे पक्खे वइसाहसुद्धं तस्स णं वइसाहसुद्धस्स दसमीपक्खेणं पाई गमिणीए छायाए पोरिसीए अभिनिविट्टाए पमाणपत्ताए सुव्वणं दिवसेणं विजएणं मुहुतेणं जंभियगामस्स नगरस्स वहिना उज्जुवालियाए नईए तीरे वेयावत्तस्स चेइअस्स दूरसामंते सामागस्स गाहावईस्स कट्टकरणंसि सालपायवस्त हे गोदोहियाए उक्कडुनिसिज्जा यायावणाए यायावेमाणस्स बट्टेणं भत्तेणं पापएवं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागणं झाणंतरिचाए वट्टमाएस अयंते अणुत्तरे निव्वाघा निरावरण कसि पडिपुणे केवलवरनापदंसणे समुप्पन्ने ॥ ११६ ॥ भगवान को केवल ज्ञान. महावीर प्रभु का अनुत्तर ज्ञान, दर्शन, चारित्र आलय ( स्थान में निर्ममत्व ) विहार, वीर्य, सरलता, कोमलता, लघुता, क्षांति, मुक्ति, गुप्ति, संतोष, सत्य, संयम, सदाचरण, वगेरह सब श्रेष्ट होने से मुक्ति का फल इकट्ठा करके आत्मा का स्वरूप चितवन करते हुए बारह वरस जब पूरे हुऐ. बारह वर्षों का तप. १२ एक मासी तप. १ छे मासी. तप. १ छे मास में पांच दिन कम, ७२ पक्ष चमण. ६ चौमासी १२ तेला 1 ·
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy