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________________ (१२६) • २ तीन मासी . २१८ बेला २ ग्रहाई मासी २ भद्र प्रतिमा ६ दो मासी ४ महाभद्र प्रतिमा २ देढ मासी १० सर्वभद्र प्रतिमा इन दिनों में तपश्चर्या के भीतर ३४६ दिन खाया था. जब तेरहवां वर्ष आया तब ग्रीष्म ऋतु दूसरा महिना चौथा पक्ष वैशाख सुदी १० पूर्व दिशा की छाया में तीसरे पहर के अंत में पुरुष प्रमाण छाया के समय सुव्रत दिवस, विजय मुहुर्च में जूंभिक गांव के बाहर ऋजु वालिका नदी के किनारे वैयाव्रत्य जक्ष के चैत्य नजदीक श्यामाक जमींदार के खेत में शाल वृक्ष के नीचे गोदोहिका उत्कट आसन में आतापना लेते थे चउविहार वेले का तप था, उत्तरा फाल्गुनी का चन्द्र नक्षत्र के योग में शुक्ल ध्यान में स्थित मभु को अनंत, अनुत्तर, अनुपम निर्व्याघात, (निराबाध ) निरावरण सम्पूर्ण, केवलवर ज्ञान दर्शन उत्पन्न हुआ. तेणं कालणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे अरहा जाए, जिणे केवली सबन्नु सव्वदरिसी सदेवमणुप्रासुरस्स लोगस्स परित्रायं जाणइ पासइ सव्वलोए सव्वजीवाणं प्रागई गई ठिई चवर्ण उववायं तक्कं मणो माणसिगं भुत्तं कडं पडिसेवियं प्रावीकम्मं रहोकम्मं, अरहा परहस्स भागी, तं तं कालं मणवयकायजोगे वट्टमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सब्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरइ ॥ १२० ॥ उस केवल ज्ञान से प्रभु त्रिलोक पूज्याह हुए जिनेश्वर, केवली, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, देव मनुष्य असुर वगेरह के और लोका लोक वर्तमान भूत भविष्य सब के पर्यायों को जानने वाले हुए. देखने वाले हुए सब लोक के सब जीवों की श्रागति, गति, स्थिति च्यवन, उपपात (देवों का परण जन्म ) तर्क मन के अभिप्राय खाया हुआ किया हुआ, उपयोग में लिया प्रकट किया वा छ्या किया. वे सब बातों को जानने वाले हुए और तीन लोक
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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