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________________ ( १२७ ) कमल के पसे माफिक लेप रहित थे कछुवा की तरह इंद्रिय वश रखते थे खड्म ( गेंडा ) के एक शींग की माफिक एकड़ी थे राग द्वेष को छोड़ दिया था, पक्षी माफक परिग्रह रहित थे भारंड पक्षी की तरह अप्रमत थे, हाथी की तरह शूरवीर थे बैल की तरह बलवान, सिंह माफक निडर और मेरु पर्वत की तरह कंप रहित थे, समुद्र की तरह गम्भीर चन्द्र की तरह सौम्य लेश्या वाले, सूर्य की तरह देदीप्यमान तेजवाले उत्तम सुवर्ण जैसे रूपवाले, पृथ्वी की तरह सब ( आर ) फरसों में समभावी थे निर्मल घी से सिंचन किया हुआ अनि समान तेज वाले थे भगवान को विचरने में कोई भी जगह प्रतिबंध नहीं था, प्रतिबंध का स्वरूप । द्रव्य से- सचित अचित वा दोनों प्रकार का द्रव्य सम्बन्ध न था. क्षेत्र से गांव नगर अरण्य क्षेत्र खला, घर आंगणा आकाश में कहां भी ममत्व न था. काल से समय आवलिका श्वासोश्वास वा दिन रात वा वरसों तक का थोडा वडा ममत्व न था. भाव से क्रोध मान माया लोभ, भय हास्य, प्रेम द्वेष, कलह, जूठा कलंक चूगली परनिंदा रति अरति माया कपट, मिध्यात्वशल्य भगवान को उनमें से कोई भी दोष नहीं था. प्रभु का दमस्त विहार. वर्षा में चार मास एक जगह रहते थे, आठ मास फिरते थे. गांव में एक रात्रि, नगर में पांच रात्रि, जैसे चंदन काटने वाली बांसी को भी चंदन सुगंधी देता हैं ऐसे भगवान् दुष्टों पर भी निरागीय करुणा धारक थे. तृण मणि पत्थर सुवर्ण पर समान भाव धारक थे, दुःख सुख में समता धारक थे. इस लोक परलोक में कुछ भी राग द्वेप नहीं करते थे जीवित मरण से निराकांक्षी थे. संसार पार जाने वाले कर्म शत्रु नाश करने को उद्यमवान होकर विचरते थे. तस्त ं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं अणुत्तरेणं दंसऐणं अणुत्तरेणं चरित्तेणं अणुत्तरेणं श्रालएणं श्रणुत्तरेणं वि
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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