SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१०६) देव नमस्कार कर उनके कल्पानुमार नंदीश्वर द्वीप में जाकर अटाई महात्मत्र कर पीछे अपने स्थान की गय. पंचम व्याख्यान ममाप्त हुआ. छठा व्याख्यान । भगवान महावीर को वंदन कर सब अपने स्थान को गए परन्तु चिर परिचित निरन्तर साथ रहने वाला नंदिवर्धन बन्धु कुछ प्रेम में कुछ भक्ति में कुछ दुःख से रोने गंते कहने लगा हे वन्यो ! जगवन्सल ! आप जीवमात्र के चितस्त्री होने से मेरा दुःख का भी कभी ग्वयाल करना ! मैं किस तरह से घर को जाउं ? किसके साथ "बंघो" कहकर बात करूंगा ? किस के साथ भोजन करूंगा ! जो कुछ मेरा आश्रय गुणों का निधान सर्व प्रिय आप ये वा चले जान हो ना मी हे करुणानिधान ! यह बंधु का कुछ भी करुणा जनक दुग्न हृदय में लाकर बोध के उद्देश से भी दशन देना में रोकने को असमर्थ हूं! । घीतराग प्रमु सब जानने थे संसार की भ्रमता का ज्ञान था इसलिय 'हाना' कुछ भी उत्तर दिय विनाही चले नंदिवर्धन दृष्टि पहुंचे और दर्शन होत्र वहां नक खड़ा रहा पीछे वो भी निस्तेज मुद्रा से पीछा लोटा ! ___ महावीर प्रभु की दीक्षा के समय अनेक जाति के सुगंधी मे लेप किये थे वो सुगंध चार मास नक रही थी वो मुगंधी से आकर्पित होकर भवरे देश देने लगे लोग उत्तम मुगंधी की याचना करने और मॉन देखकर प्रभु को मारने की भी तैयार होते थे तो भी राग द्वेष को दूरकर प्रशु विहार करते दो घड़ी दिन बाकी रहा उस समय “कुमार" नाम के गांव नजदीक आकर ध्यान में ग्बई रहे. प्रभु की दीक्षा में धीरता। प्रभु कायोत्सर्ग में खड़े थे उस समय एक गोवाल सारा दिन खन में चला में काम कर प्रभु का वलं सौंपकर घर को गायों दाहन को गंया प्रमु मान थं चल चाने को दूर चले गये और गायों को दोहकर गांवाल आया बल को नहीं देखकर प्रभु को पछा प्रभु ने उत्तर नहीं दिया वो चला गया रातभर बैल को इंटे नो भी मिले नहीं थककर पीछा आया नो प्रभु के पास बैल बहे देख
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy