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________________ (१०७) कर गोवाल ने विचारा कि यह कोई ऐसा पुरुष है कि जो जानता था तो भी मुझे कहा नहीं उसको शिक्षा करूं ऐसा दृढ विचार कर बैल की रस्सी से प्रभु को मारने को दोड़ा प्रभु तो शांतही थे अवधिज्ञान से इन्द्र ने वो वात जानकर एकदम आकर गोवाल को शिक्षाकर रोक दिया गोवाल चला गया. ___ पीछे प्रभु को इन्द्र कहने लगा हे प्रभो ! आप को बहुत उपसर्ग होने वाले हैं इसलिये वहां तक में आपके साथ रहकर आपकी रक्षा करूं प्रभु ने कहा कि दूसरे की सहाय से तीर्थंकर कभी केवलज्ञान प्राप्त नहीं कर सक्ते परन्तु देवेन्द्र वगैरह की सहाय विनाही तीर्थकर अपने पराक्रम से केवलज्ञान प्राप्त करते हैं तो भी इन्द्र ने मरणांत उपसर्ग दूर करने को सिद्धार्थ नाम के व्यंतर जो पूर्व की अवस्था में प्रभु महावीर की मौसी का लड़का था उमको रक्षा के लिये रखकर देवेंद्र अपने स्थान को गया. प्रभु का प्रथम पारणा (भोजन) दीक्षा लेने के बाद प्रभु ने कोलाग सनिवेश (सदर वा केप ) में बहुल ब्राह्मण के घर को द्ध पाक से ग्रहस्थ के पात्र में ही भोजन किया (इससे यह सूचन किया कि मेरे वाद साधु कर पात्री नहीं परन्तु काष्ठ पात्र में भोजन करने वाले होंगे ) गोचरी ( भोजन ) होने के समय तीर्थकर की महिमा बहाने को पांच दिव्य प्रकट किये फूल वृष्टि, वस्त्र दृष्टि, सुगंधी जल-वृष्टि देव दुंदुभी और यह उत्तम दान है ऐसी उद्घोषणा ( गौर से आवाज ) हुई. तीर्यकर जहां पारणा (वन के पश्चात भोजन ) करते हैं वहां देवता प्रसन्न होकर साढे वारह कोड सोन, या (सुवर्ण मुद्रा) की दृष्टि करता है दान देने वाले को लाभ और प्रभु की महिमा होती है और अन्य मनुष्यों को धर्म श्रद्धा होती है कि यह कोई महात्मा पुरुष है यदि कम वृष्टि करे तो कम से कम भी साढे वारह लाख सुवर्ण मुद्रा की वृष्टि करें. वहां से विहार कर प्रभु मोराक सन्निवेश में आये, दुइजंत नामका तापस जो सिद्धार्थ राना का मित्र था वो वहां पर तापसों का कुलपति ( नायक ) होकर रहता था, उस से प्रभु पूर्व के अभ्यास से दोनों हाथ चौड़े कर अंगो अंग मिले. वहां से रवाने होने के समय तापसों के नायक की विज्ञप्ति होने से प्रभु , निरागी होने पर भी चोमासे पर वहां आने का मंजुर कर विहार किया, इस
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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