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________________ (१०५) उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे सीयं ठावइ, ठावित्ता सीयारो पचोरुहइ, पचोरुहित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं प्रोमुअइ, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोअं करेइ, करित्ता छटेणं भत्तेणं अपाणएणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं एगं देवदूसमादाय एगं अबीए मुंडे भवित्ता अगाराअो अणगारिश्र पव्वइए ॥ ११४ ॥ भगवान पालखी में से निकल और अपने हाथ से सब वस्त्र आभूपणों को उतार और पंच मुठी से लोच करे लोच करके चन्द्र नक्षत्र उत्तरा फाल्गुनी का योग आने पर जिन्होंने दो उपवास (छठ, बैला) चौविहार (विना पानी) करके इन्द्रने दिया हुआ देव दृष्य वस्त्र को ग्रहण कर अकेले राग द्वेप रहित होकर ग्रहवास से निकल कर अनगार ( साधु ) हुए भीतर के क्रोधादि और बाहार के बालों को दूर कर मुंड हुए जब भगवान ने लोच, किया और साधु हुए तव करेमि भंते उच्चरे उस.समय इन्द्र वाजिंत्र और अवाज दूर कराकर सब शांति चित्त से डरा श्रवण करे, ५ - महावीर प्रभु भी स्त्रयं अरिहंत होने से नमो सिद्धाणं कहकर भंते शब्द छोड़ कर करेमि सामाइ सावजं जोमंपच्चक्खामि. वगैरह सर्व विरति का पाठ पढे स्वयं भगवान (भंते ) होने से भंते शब्द न वाले. ___ करेमि सामाइनं सावज्ज जोगं पच्चक्खामि जावजीवाए तिविहतिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारमितस्स पडिक्कगामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि. , , .. - अर्थात् प्रभुने प्रतिज्ञा की कि मैं आज' से जीवित पर्यंत मन वचन काया से कोई. भी जाति का पाप न करूंगा न कराउंगा न करने वालों को भला जानुंग्रा छमस्थ अवस्था में यदि जरा भी अतिचार लगा तो उससे पीला हट कर उसकी निंदा गर्दा कर आत्म ध्यान में ही रहकर शरीरादि मोह को छोडंगा दीक्षा विधि पूरी होने से प्रभु को चौथा ज्ञान मन पर्यव उत्पन्न हुआ, इन्द्रादि
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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