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________________ (१०१) सब्बोरोहेणं सधपुप्फगंघमल्लालंकारविभूसाए सब्बतुडियसहसन्निनाएणं महया इड्ढीप महया जुइए महया वलेणं महया वाहणे णं महया समुदएणं महया वरतुडियजमगममगप्पवाहएणं संखपणवपडहभरिमल्लरिखरमुहिहुडुक्कदुंदुहिनिग्घोसना. इयरवेणं कुंडपुर नगर मझमझाएं निगरच्छह, निग्गच्छित्ता जणेव नायमंडवणे उज्जाणे जेणेव अमोगवरपायवे तेणेव उवागच्छड़ ।। ११३ ॥ दीनाथ भगवान का उद्यान में जाना. वीर प्रभु हजारों आंखों से देखान हजागें मुन्बों में स्तुनि कराने, हजारों हृढ़या मे जय जय नाद के अवाज प्रकट कराने हजारों मनुष्यों से "संवक हान की प्रार्थना" कराने कांति रूप गुणों में प्रार्थना कगने, हजारों अंगुलिओं में " यह भगवान है" ऐसा उच्चार कर्गत दाहिणा हाथ में हजारों स्त्री पुरुषों से जो नमस्कार होना था उमको स्वीकारते शहर के भीतर हजारों हवेलियों (उत्तम मकान ) का उल्लंघन कर तंत्री तल ताल त्रुटिन वगैरह वाजिंत्रों का नाद गीत और मधुर जय जय शब्द से त्रिलोकनाय जयवंता रही आप धर्म को प्राप्त करा इत्यादि वचनों में प्रेरणा कर्गत महावीर प्रभु आभूषण की सर्व धुति स सब प्रकार की मंपचि में, सब प्रकार की सेना वाहन से महाजन मंडल से युक्त मब प्रकार के सन्मान युक्त सब विभूनि सब प्रकार की शोभा से युक्त सब प्रकार का हर्प उत्साह से युक्त सब स्त्रजनों में युक्त नगर में रहती हुई अठारह जानि के माय सब नाटकों से युक्त, नालाचर, अंतःपुर, परिवार से युक्त सब प्रकार के फूल, गंध, माला अलंकार से विभूषित, सब वाजिंत्रों से आकाश गुंजाबने बहुन गिद्धि बहुन धुति, कांनि, सेना, वाहन, समृदय, सब प्रकार के वाजिंत्र समूह शस्त्र पह भरी पालर प्रांझ हुक नौबत नगरह से अवाज होना और फिर उस का प्रतिध्वनि मे गाजना इस तरह सत्र महोत्सव आनन्द पूर्वक प्रभु वृत्रिय कुंड नगर का मध्य भाग में होकर बजार में से निकलकर जहां पर जात वन बंड नाम का उद्यान है वहां आकर अशोक वृक्ष के नीचे ठहरने का होने से सब वहां खड़े रहे.
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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