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________________ ( ९९ ) कहना मान लिया परन्तु उस समय से निरवद्य आहारादि से ही अपना निर्वाह करना और ब्रह्मचर्य पालन करना प्रारम्भ किया. म की दीक्षा का निश्रय जानकर कितनेक राजा उन प्रभु के जन्म समय से १४ स्वप्न सूचित गर्भ होने से चक्रवर्ती राजा होंगे तो हमारी सेवा का लाभ पीछे बहुत मिलेगा इस हेतु से सेवा करने थे वे सब श्रेणिक चेड़ा महाराजा चंद मद्योतन वगैरह अपने देश को चले गये. एक वर्ष पहिले अर्थात् भगवान की २९ वर्ष की उम्र हुई तब लोकांतिक देवने आकर जय जय नंदा जय जय भद्दा कहकर प्रार्थना की प्रभु भी अब दीक्षा लेने के पहिले १ वर्ष से तैयारी करने लगे. दीक्षा पहिले दान. दीक्षा को अवसर विचार कर हिरण्य छोड़कर सुवर्ण धन राज्य देश सेना वाहन को धन धान्य के भांडार सबकी मूर्छा ममत्व छोड़ नगर अंतःपुर ( राणी परिवार ) नगर ग्रामवासी लोगों का मोह छोड़ बहुत धन सुवर्ण रत्न मणि शंख शिला प्रवाल ( मुंगी ये ) रक्त रत्न ( माणिक ) वगैरह सब मोहक वस्तुओं का मोह छोड़कर सर्वथा संसारी निंदनीय मोह ममत्व छोड़ याचक और गोत्र बन्धुओं को सर्व पांट दिया. देवों की सहाय से दान. सूर्योदय से लेकर १ | मदर ३ ||| घंटे तक तीर्थंकर प्रभु दान देवे नगर की शेरी और रास्ते पर उद्घोषणा ( डोंडी ) पिटा कर सब लोगों को सूचन करे कि इच्छित दान लेजाओ. प्रतिदिन १ करोड आठ लाख सुवर्ण मुद्रा का दान देवे उस के साथ वस्त्र आभूषण मणि मोती मेवा मिठाई का भी दान देवे. जितना दान देवे और नया देने को चाहिये वो निरंतर इन्द्र अपने देवों द्वारा प्रभु के भंडारों में भर देवे. तीर्थकरों के दान का अतिशय । ( १ ) प्रभु दान देते खेद न माने अर्थात् देने में श्रम 'न' माने, देते ही रहवे ( २ ) इशान इन्द्र देवता को दान लेते रोके और मनुष्य को हद से ज्यादा मांगते रोके ( ३ ) चमरेंद्र जितनी मुंह से मांगे उतनी सुवर्णमुद्रा निकाल कर देवे ( ४ ) भुवनपति देवता लोगों को दान लेने को वे आवे ( ५ ) व्यंतर
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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