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________________ (५८) मार्च (त्रिशला देवी से उत्पन्न होने वाले ) विदहमुकुनाल (घर में ही मुकामल) ऐसे प्रभु घर में तीस वर्ष तक रहे. मात पिता के स्वर्गवास के बाद बड़े भाई की आवानुसार और अपनी प्रतिज्ञा पूरी होने बाद लोकनिक देवों ने आकर ऐने मधुर बचनों से कहा कि:. "जय २ नंदा!, जय२ भदा ! भदं ते, जय २ खत्तिअवरवसहा !बुझाहि भगवं लोगनाहा! सयलजगजीवहियं पवत्तहि धम्मतित्थं, हियमुहनिस्मयसकरं सबलोए सबीवाणं भविस्मइत्तिकटु जयजयसई पउंजंनि ॥ १०६ ।। समृद्धिवंन ! आप जयवंतावतॊ २ हे कल्याणवंत ! आप जयपनापों ई सत्रियों में श्रेष्ट वृपभ समान ! हे भगवन् श्राप दीचा लो ! ह लोकनाय भग: वन् ! आप केवल ज्ञान पाकर सकल जंतु हितकारक धर्मनीयं प्रकट गे! आपमा स्थापिन धर्म तीर्थ सब जीवों को हिनकारी, मुखकारी और मोक्ष का देन वाला होगा इमलिये आपकी निरंतर जय हो. ऐसा हम प्रकट कहते हैं. ___ पहिल भी महावीर प्रभु का ग्रहम्थावास में उत्तम विशाल और स्थायी ऐसा अवधि ज्ञान और अवधि दर्शन था, उस उत्तम अवधि बान का उपयोग देकर अपना दीक्षा ममय जान लिया था. प्रभु का उस वारे में कुछ वयान. २८ वर्ष की उम्र महावीर प्रभु की हुई उम ममय प्रभु के माता पिता इस संसार को छोड़ देवलोक में गये प्रयु का अभिग्रह (गर्भ में जो प्रतिज्ञा कीथी कि में मात पिना के मृत्यु बाद दीक्षा लूंगा ) पूर्ण हुआ और दीक्षा लेन को नैयार हुए माता पिता की मृत्यु से बड़े भाई को खद हुआ था जिससे नंटिवर्धन ने कहा कि दे बंघो! घाव के उपर नमक का पानी नहीं डालना चाहिये अर्थात् मात पिता के वियोग से मैं दुःखी हूं ऐसे समय में आपको मुझे छोड़ कर नहीं जाना चाहिये. प्रभु ने कहा कि संसार में कोई किसी का नहीं है नंदीपर्यन ने कहा कि मैं बह जानता हूं ना भी बन्धु प्रेम हटता नहीं है इसलिये इस समय दीक्षा न लो, प्रभु ने करुणा लाकर साधु भाव हृदय में रखकर उसका
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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