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________________ (१००) देवता दान लेने वालों को अपने घर पहुंचाव (६) ज्यानिपी देव विद्याधरों को टान लेजाने की खबर देवे. नंदिवर्धन राजा ने भी बंधु प्रेम से तीन दानशालाएं प्रारम्भ की. (१) अनदान कोई भी लेजाओ, (२) वस्न लजायो प्रभु के दान समय इन्द्रों ने सहाय कर सेवा की उसका फल उनका यह होवे कि वे आपस में दो वर्ष तक परस्पर क्लेश न करे राजा अपने भंडार में दान की सुवर्ण मुद्रा रखें तो चार वर्ष तक यशः कीर्ति बढे रोगी के रोग चले जावे दान लेने वालों को १२ वर्ष तक रांग न होवे ३६० दिन तक ऐसा दान देने से ३८८ कोड़ ८० लाख मुवर्णमुद्रा का प्रभु ने दान दिया. पुबिपि णं समणस्स भगवो महावीरस्स माणुस्मगारो गिहत्थधम्मायो अणुत्तरे प्राभोइए अप्पडिवाई नाणदंसणे हुत्था, तएणं समणे भगवं महावीरे तेणं अणुत्तरेणं अाभोइ. एणं नाणदंसणेणं अप्पणो निक्खमणकालं आभोएइ, श्राभोइत्ता चिच्चा हिरण्णं, चिच्चा सुवरणं, चिचा धणं, चिच्चा रज्जं, चिच्चा रहूँ, एवं वलं वाहणं कोसं कुट्ठागारं, चिच्चा पुरं चिच्चा अंतेउरं, चिच्चा जणवयं, चिच्चा विपुलधणकणगरयणमणिमुत्तियसंखसिलप्पवालरत्तयणमाइयं संतसारसावइज्ज, विच्छाइत्ता, विगोवइत्ता, दाएं दायारेहिं परिभाइत्ता दाणं दा. इयाणं परिभाइत्ता ॥ ११० ।। दीक्षा की तैयारी। बड़े भाई की आज्ञाले प्रभु दीक्षा लेने को जब तैयार हुए तब इन्द्र और नंदिवर्धन दोनों दीक्षा की महिमा करने लग प्रभु को सिंहासन पर बैठा स्नान कराकर बावना चन्दन का लेप कर मुकुट कुण्डल बगरह पहरावे, पीछे ५० धनुष्य लम्बी २५ धनुष्य चौड़ी, ३६ धनुष्य उंची, बीच में सिंहासन और १००० पुरुष को उठान योग्य ऐसी चंद्रप्रभा नामकी पालखी जो नंदिवर्धन ने
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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