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________________ जीवन्धरचम्पू विषय विजयाकी दक्षिण श्रेणी में नित्यालोकपुरी नगरी गरुडवेग राजा, उसको धारिणी पत्नी तथा गन्धर्वदत्ता पुत्रीका वर्णन, धर विद्याधर का आत्म परिचय। गरुड़वेगके साथ श्रीदत्तका साक्षात्कार, पुरानी मित्रताका प्रकाश, स्वयंवर के लिए श्रीदत्तको कन्या सौंपा जाना, श्रीदत्तका नगरीमें वापिस आना, स्वयंवर मण्डपका वर्णन, वीणा-वादनमें जीवन्धर द्वारा गन्धर्वदत्ताका पराजय, गन्धर्वदत्ताका सौन्दर्य वर्णन और विवाह सम्भोग शृङ्गार वर्णन चतुर्थ लम्भ वसन्तऋतु वर्णन, नागरिक लोगोंका वन क्रीड़ाके लिए जाना, वन क्रीडाका वर्णन ब्राह्मगों के द्वारा कुत्ताका घायल किया जाना, जीवन्धरका उसके लिए णमोकार मन्त्र सुनाना, उसके फलस्वरूप कुत्ताका सुदर्शन यक्ष होना, यक्षके द्वारा आकर जीवन्धर का आभार मानना जल-क्रीडाका वर्णन जीवन्धरके द्वारा गुणमाला और सुरमञ्जरीके चूर्णकी परीक्षाका वर्णन हाथी का गुणमाला की ओर आक्रमण, जीवन्धरके द्वारा हाथीका वश किया जाना, __जीवन्धर और गुणमालाके हृदयमें अनुरागकी उत्पत्ति चित्रलेखन, शुक द्वारा पत्रप्रेषण जीवन्धर और गुणमालाका विवाह पश्चम लम्भ पराजित हाथीका आहार छोड़ना, सेवकों द्वारा काष्ठाङ्गारसे जीवन्धरकी शिकायत करना, काष्ठाङ्गारका कुपित होकर उन्हें पकड़नेके लिए सेना भेजना। सेनाके साथ जीवन्धरका युद्ध, तदनन्तर गन्धोत्कटकी सलाहसे जीवन्धरका काष्ठाङ्गारके सम्मुख जाना, काष्ठाङ्गारके द्वारा जीवन्धरको शूलारोपणकी सजा, जीवन्धर द्वारा सुदर्शन यक्षका स्मरण, यक्षका आना, जीवन्धरको अपने भवनमें ले जाकर उनका स्वागत-सम्मान करना तीर्थयात्राके उद्देश्यसे जीवन्धरका देश भ्रमण, एक अटवीके बीच दावानलमें फंसे हाथियोंको देखकर जीवन्धरके द्वारा यक्षका स्मरण, यक्षके द्वारा जल वर्षाकर हाथियोंकी रक्षा होना पल्लव देशकी चन्द्राभ नगरीमें राजा धनपतिकी पुत्री पद्माको साँपके काटनेपर जीवन्धरके द्वारा उसका विषमोचन । अन्तमें जीवन्धरके साथ उसके विवाहका वर्णन, अलंकार धारण आदि षष्ठ लम्भ सूर्यास्त वर्णन, रात्रितिमिर वर्णन, जीवन्धरका पद्माके घरसे बिना कहे चले जाना, उनका पता चलानेके लिए दूत भेजना, पर पता नहीं चलना तीर्थयात्राके लिए जीवन्धरका भ्रमण जारी रहना, किसी तपोवनमें मिथ्यातप तपने वाले साधुओंको जीवन्धरका सदुपदेश ९१ १०६ १०६
SR No.010390
Book TitleJivandhar Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1958
Total Pages406
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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