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________________ विषयानुक्रमणिका प्रथम लम्भ विषय मङ्गलाचरण और पीठिका जम्बूद्वीपके हेमाङ्गद देशमें राजपुरी नगरीका वर्णन राजा सत्यन्धरका वर्णन विजया रानीका वर्णन राजा सत्यन्धरकी विषयासक्ति और मन्त्रियोंका हितोपदेश काष्ठाङ्गारके लिए राज्यसमर्पण विजया रानीका स्वप्न दर्शन और मागधजनोंके द्वारा जागरणगीत पतिसे स्वप्नोंका फल पूछना, रानीका मूञ्छित होना, राजाका समझाना रानीकी गर्भावस्थाका वर्णन काष्ठाङ्गारके द्वारा मन्त्रियोंके साथ मन्त्रणा, धर्मदत्त मन्त्रीका प्रतिकार करना, राज भवनका सेना द्वारा घेरा जाना, द्वारपालके द्वारा राजाको सूचना, विजयाका मूञ्छित होना, राजाका सम्बोधन, केकीयन्त्रमें बैठाकर विजयाका आकाशमें विचरण, युद्ध, यद्ध में राजाका मारा जाना रानीके केकीयन्त्रका राजपुरीके श्मशानमें उतरना, जीवन्धरका जन्म, रानीका विलाप, देवीका आगमत, गन्धोत्कट वैश्यके द्वारा जीवन्धरका अपने घर ले जाना, रानीका दण्डक वनमें पहुँचना जीवन्धरकी बाल-लीलाका वर्णन द्वितीय लम्भ जीवन्धरका विद्यालयमें विद्याध्ययन, जीवन्धरके गुरुकी आत्मकथा एकान्तमें गुरुने जीवन्धरको बताया कि 'तुम राजपुत्र हो' काष्ठाङ्गारने तुम्हारे पिता सत्यन्धरको मारा है, यह सुनकर जीवन्धरका काठाङ्गारके प्रति कुपित होना तथा मारनेके लिए उद्यत होना, गुरुके द्वारा समझाया जाना और एक वर्ष तक क्षमा ग्रहण करना । गुरुका दीक्षा लेना। जीवन्धरके तारुण्यका वर्णन कालकूट वनचर द्वारा गोपालोंका गोधन हरा जाना, गोपालोंका काष्ठाङ्गारके द्वारपर रोना, काष्ठाङ्गारका सेना भेजना, सेनाका हारकर भागना, नन्दगोपका घोषणा कराना, जीवन्धरका गोपालोंको जीतकर गोधन वापिस लाना, पद्मास्यका गोविन्दाके साथ विवाह होना तृतीय लम्भ पद्मास्यकी गोविन्दाके साथ क्रीड़ा, श्रीदत्त नामक वैश्यको धनार्जनकी इच्छा, उसकी समुद्र यात्राका वर्णन द्वीपान्तरमें धनार्जन, वापिस आते समय कृत्रिम तूफानसे उसके जहाजका डूब जाना, एक काष्ठखण्डके सहारे उसका बाहर निकलना, धर विद्याधरके लिए अपना सब समाचार सुनाना, उसके साथ विजयाध पर्वतपर जाना, विजयाधका वर्णन
SR No.010390
Book TitleJivandhar Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1958
Total Pages406
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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