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________________ विषयानुक्रमणिका विषय पृष्ट ११८ १२६ वनमें जिनविमान (जिनमन्दिर) का दर्शन, जीवन्धरके स्तोत्रके प्रभावसे उसके किवाइ. अपने आप खुल जाना, जिनभगवान्के दर्शन और पूजनका वर्णन सेवकके द्वारा क्षेमनगरीके सुभद्रसेठ तथा क्षेमश्रीका वर्णन, सेवक द्वारा सूचना मिलने पर सेठका आगमन, जीवन्धरका उसके घर जाना, सेठ द्वारा पुत्री विवाहकी प्रार्थना, जीवन्धरकी स्वीकृति, तदनन्तर विवाह वर्णन सप्तम लम्भ जीवन्धरका रात्रिके समय क्षेमश्रीके भवनसे चला जाना, जीवन्धरकी आभूपण दानकी इच्छा, किसानका सामने आना, उसके लिए जीवन्धर द्वारा गृहस्थ धर्मका उपदेश देनेके बाद आभूषण दान करना, मध्याह्नकालमें जीवन्धरका एक उद्यान में विश्राम करना विद्याधरीका जीवन्धर पर मोहित होना, जीवन्धर द्वारा दुःखी विद्याधरके लिए धर्मो पदेश देना, उसमें स्त्रियोंके मायावभावका वर्णन आदि जीवन्धरका उद्यानमें जाना, कुछ राजकुमारों द्वारा वाणसे आमके फल तोड़नेका निष्फल प्रयास, जीवन्धरका अपनी कलाका प्रदर्शन, राजकुमारोंके अनुरोधसे जीवन्धरका उनके घर जाना । हेमाभपुरीके राजा दृढमित्रके द्वारा जीवन्धरका सत्कार, जीवन्धरका उनके पुत्रोंके लिए अस्त्र विद्याका उपदेश, कृतज्ञताके रूपमें जीवन्धरके साथ राजपुत्री-कनकमालाका विवाह अष्टम लम्भ एक स्त्री द्वारा जीवन्धरके लिए नन्दायके आनेका समाचार, दोनों बन्धुओंका चिरमिलन, पिछली घटनाका वर्णन, गन्धर्वदत्ताकी सहायतासे नन्दायका यहाँ तक आना, गन्धर्वदत्ताके पत्रमें गुणमालाके विरहका वर्णन राजमन्दिरके सामने गोपों द्वारा अपने गोधन चुराये जानेका विवरण, उनकी रक्षाके लिए जीवन्धरका जाना, वहाँ पद्मास्य आदि मित्रोंका मिलना मित्रवार्ता में मित्रोंके अपने आनेका वृत्तान्त तथा मार्गमें विजयामाताके दर्शनका वर्णन, उसे सुनकर जीवन्धरका मातृदर्शनके लिए उत्कण्ठित होना मातृदर्शन, यक्षका आगमन, मातृप्रेम दर्शन, जीवन्धरकी माताके प्रति स्वविक्रमोक्ति, माताको आश्वासन देकर जीवन्धरका राजपुरी जाना, नगरके वाहर मित्रोंको ठहराकर स्वयं नगरकी प्रदक्षिणा करना, कन्दुकके आघातसे सागरदत्त सेठकी पुत्री विमलाके प्रति जीवन्धरका अनुराग बढ़ना तथा उसके साथ विवाह होना नवम लम्भ विमलाको छोड़ जीवन्धरका मित्रोंके पास आना, मित्रोंकी व्यङ्गयपूर्ण वाणीसे प्रेरित हो जीवन्धरका सुरमञ्जरीको वश करनेका निश्चय करना, वृद्धका रूप बनाकर सुरमञ्जरीके महल में जाना, वृद्धावस्थाका मनोहर वर्णन, सुरमञ्जरी द्वारा वृद्धको भोजन कराना, उसका वहींपर विश्राम करना, रात्रिमें आकर्षक गाना गाना, सुरमञ्जरीका जीवन्धरकी प्राप्तिका उपाय पूछना, जीवन्धर द्वारा कामदेवकी पूजा करनेका उपदेश देना, सुरमञ्जरीका वृद्धको लेकर कामदेवके मन्दिर जाना, वहाँ कामदेवकी पूजा तथा उससे वरदानमें जीवन्धरकी प्राप्तिकी प्रार्थना, जीवन्धरका ४४३ १४६ १५३
SR No.010390
Book TitleJivandhar Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1958
Total Pages406
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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