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________________ goo जीवामिगमत्र शदधिकानि नव योजनशतानि (९४९) एकोनपश्चाशदधिक नव भोजनपरिमितः परिधिरेकोरुकादि द्वीपानां चतुर्णा भवतीति। ___अतोऽग्रे प्रत्येकस्मिन् चतुपके पूर्व-पूर्व चतुष्कपरिधिममाणे पोडशाधिके नियते प्रक्षिप्तेऽग्रेवन परिधिपरिमाणं समायाति तत् आह-वारसपण्णढाई हपकण्णाईण परिक्खेतो' हयकर्णादीनां-हयकर्ण-गोकर्ण-शकुळीकर्णानां द्वितीय चतुष्कगतानां चतुर्गा द्वीपानां परिक्षेत्रः-परिधिः द्वादशयोजनशतानि पञ्चपष्टय. धिका (१२६५) पश्चपष्टयधिक द्वादशशतयोजनपरिमितः परिधिः हयकर्णादीनां चतुर्णा द्वीपानां भवतीति ।।१।। 'आयसमुहाईणं पन्नरसेकासीए जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिषदेवेग आदर्शमुखादीना मादर्शमुखमेण्द्रग्वादयोमुख गोमुख द्वीपानाम् एकाशीत्यधिक पश्चदशोजन मतानि १५८१ मिश्चिद्विशेषाधिकानि परिक्षेपेण 'एवं एएणं कमेणं उवउंजिऊण णेयमा, चत्तारि चत्तारि एगप्पमाणा' एवमेतेन उपयुक्तक्रमेण पूर्वोकावगाहना-विष्कम्मपरिधिप्रमाणरूपेण उपयुज्य प्रत्येक चतुष्कगता श्चत्वार चत्वारः परसारमे सप्रमाणा नेहव्या ज्ञापार, यथा एफस्मिन् चतुष्के आधद्वीपस्य यद् अवमाहना-विष्कम्मपरिधिपरिमाणं भवति तदेव परिमाणं शेपाणां त्रयाणां द्वीपानां भवति चतुर्णामेक प्रमाणत्वं बोध्यम् । है 'एगोरुय परिक्खेयो' इत्यादि, 'एगोरुय परिक्खेवो' एफोरुक आदि चार द्वीपों का परिक्षेप नौ सौ गुनचास-९४९ योजन का है हयकर्ण आदि द्वीपों का परिक्षेप प्रमाण 'धारसपन्नहाई' बारह सौ साठ १२६५ योजन का है 'आयंसमुहादीणं' आदर्शमुख आदिकों का परिक्षेष प्रमाण 'पन्नर सेकासीए जोयणसए' पन्द्रह सौ इक्यासी १५८१ योजन का है. परिधि के प्रमाण को यहाँ से सर्वत्र यह कुछ विशेषाधिक है ऐसा समझना चाहिये 'एवं एलेणं कमेण उपजिऊण थव्या चतारिर पप्पमाणा' इस क्रम से जोड़कर चार चार द्विपों का प्रमाण परस्पर माय विहीन हवे तना ५२२५ ४ामा भाव 2. 'एगोरय परिक्खेत्रो' ।३४ विगेरे यार दीवानी परिक्ष५ नक्सा भागापयास ८४८ याननी छ. ५४ विगेरे दीयाना परिक्ष पर्नु अमाएर 'बारसपन्नडाइ' पारसे। पास ये ननु छे. 'आयंसमुहादीण' भादश भुम विगेरे दीवाना परिक्षेपर्नु प्रमाण 'पन्नरसेकासीए जोयणसए' १५८१ पासोमेश्यासी योननु छ. तथा पाधि प्रमाय महिथी मधे ते ७ विशेषाधि छ तेम सा. 'एवं एएणं कमेणं उवऊ जिऊण णेयव्वा चत्तारि चत्तारि एगप्पमाणा' २॥ प्रमाण મેળવીને ચાર ચાર દ્વીપનું પ્રમાણ પરસ્પર સરખું સમજવું.
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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