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________________ प्रद्योतिका ठीका प्र. ३ उ. ३ . ४४ हयकर्णद्वीपनिरूपणम् ७०१ 'णाणते' नानात्वं परस्परं भेदस्तु चतुष्कमपेक्ष्य भवति कुत्र कुत्रेत्पाद - 'ओगा व परिवखेचे' अवगाहे विष्कम्भे परिक्षेपे, तथाहि एकचतुष्कापेक्षयाऽन्यान्य चतुष्केषु प्रत्येकमेकैकशतयोजनवृद्धधा- अवगाहनाऽव्यामविष्कम् परिमाणं भवति, परिधिपरिमाणं तु षोडशोत्तर त्रिरात (३१६) योजनहृद्धया प्रत्येक चतुष्के भवतीत्येतदेव नानाव मत्रेति । तदेव दर्शयति- 'पढमवीय' इत्यादि, 'पढवीत चकाणं उग्गहो विक्खंभो परिक्खेदो भणिओ' प्रथम द्वितीय तृतीयचतुष्काणाश्र्. अवग्रहः अत्रणाहना विष्कम्भः परिक्षेत्रः सूत्रे एवं भणित:कथितः, अन्यत् प्रदर्श्यते = 'चउत्थ- चउक्के' इत्यादि, 'चउत्थचउनके छ जोयणसवाई आमासचिव खमेणं' चतुर्थचतु के पयोजनशतानि आयामविष्कम्भेणदैयविस्ताराभ्यां पयोजनशतममाणक चतुर्थ चतुष्को भवति । 'अहारसत्ताणउत्ते जोयस' सप्तनवत्यधिकाष्टादशयोजनशतानि । (१८९७) परिक्षेपेण द्वीपा भन्Pata पंचमच सत्तजोयणमयाई आयामविवखभे' पञ्चमचतुष्के सप्तसमान ही समझना चाहिये 'णाणलं ओगाहे, विक्खंभे, परिक्खेवे' इस तरह के कथन से यह भली भांती समझ में आ जाता है, कि अवगाह में विष्कम्भ में और परिक्षेप में प्रत्येक की अपेक्षा से नानात्व भिन्नता है इस में प्रथम द्वितीय तृतीय चतुष्कों का अवगार-आयाम विष्कम्भ और परिक्षेत्र को लेकर यहां सूत्र से ही स्पष्ट कर दी है 'यही वान' पदमपीयलक्ष्य बकाणं उग्गहो विक्खं यो परिक्खेवो भणितो' इस सृत्रद्वारा सूर कारने समझा है । 'चक्थचउक्के' चतुर्थ चतुष्क में 'छजोयणमयाः' आयाम विक्खंभेण अहारसत्ताणवते जोयणसते परिक्खेवेणं' चौथे चतुष्क के अश्वमुखादि द्वीपों की लम्बाई चौड़ाई छह 'मौरोजन की है और परिधि अठार सौ सतानवे - १८९७ योजन से 'णाणत्तं ओंगा हे, 'विक्खंभे, परिक्खेवे' या अभाऐना स्थनथी से सारी रीते સમજાય જાય છે કે અવગાહનામાંવિકભમાં, અને પક્ષેિપમાં દરેકની અપેક્ષાથી જુદાપણું આવે છે. તેમાં પહેલા બીજા, ત્રીજા અને ચેથાના અવગાહુ આયામ વિષ્ણુભ અને પરિક્ષેપને લઈને અહીયાં સૂત્રમાંજ સ્પષ્ટતા કરી છે. એજ वात 'पढम बीया तइय चउक्काणं उग्गहो, विक्खभो, परिक्खेवो भनियो' मा સૂત્રપથી સૂત્રકારે સમજાવેલ છે. 'चरत्थ चउक्के' थोथा तुष्टुभां 'छ जोयणसयाई आयाम विक्ख भेणंagreed जोयसर परिक्खेवेणं यथा यतुष्टना अश्वमुख विगेरे द्वीपे ની લખાઇ પહેાળાઇ સે છસો ચેાજનની છે. અને પરિધિ ૧૮૯૭ અઢારસે सत्तालु योन्नथी ४६४ वधारे छे. 'पंचम चउक्के सत्त जोयणसयाई आयाम
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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