SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 722
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६९८ जीवामिगमक्ष एतेषामश्वकर्णसिंहकीकर्णकर्णमाबरणनायकद्वीपानां चतुर्णा परतो यथाक्रमम् उत्तरपोररत्यादि विदिक्चरमान्वाद प्रत्येक मष्टौ अष्टौ योजनशतानि लवणसमुद्रमदगाघाष्टयोजनशतायामविष्कम्भा एकोनत्रिंशदधिक पञ्चविंशति योजन शतपरिक्षेपाः पद्मवरवेदिका वनपण्डसण्डित बाह्यप्रदेशाः जम्बूद्वीपवेदिकान्ताद् अष्टयोजनप्रमाणान्तरा उल्कामुख मेघमुख विद्युन्मुख विद्युदन्ताभिधानाश्वस्वारो द्वीपा भवन्तीति ज्ञातव्याः, तयादि-अश्वकर्णद्वीपस्प परत उल्कामुखो द्वीपो भवति, तपा-सिंहकर्णद्वीपस्य परतो मेघमुखद्वीपनामको द्वीपो भवति, तथाअकर्णनामक द्वीपस्य परतो विद्युन्मुखनामको द्वीपो भवति, तथा-कर्णमावरण द्विपस्य परतो विधुदन्तनामको द्वोपो भवतीति ।। 'घणदंताई णं जाव णव जोयण सयाई' घनदन्तादीनां यावन्ननयोजनशतानि, अयं भाव उल्कामुखादीनां चतु. म् उल्कामुख मेवमुख विद्युन्मु व विद्युदन्तनामकान द्वीपानां परतो यथाक्रमम् पौरस्त्यादि चरमान्त से विद्युत नाम के जो चार द्वीप है वे आठ आठ सो योजल की लम्बाई चौड़ाई वाले हैं लबा समुद्र में आठ साठ सौ योजल आगे जाने पर थे आते है इनकी प्रत्येक की परिधि का प्रमाण २५२९ पचीसली उन्तील शेजन का है। ये भी खप द्वीप पद्मवर वेदिका और बनखण्ड से मंडित याह्य प्रदेशों वाले ई जम्बूद्रीपकी वेदिका के अन्त से इनका अन्तर आठलो शोजनका है इस प्रकार अश्वकर्ण से आगे उत्तर पौररत्यादि घरमान्त ले श्राउ लौ योजन लषण समुद्र में जाने पर उल्कामुख द्वीप है मिहकर्ण से आगे आठ सौ योजन लवण समुद्र में जाने पर मेघमुख द्वीप है अकर्ण से भागे आठ सौ योजन लवण समुद्र में जाने पर विद्युन्मुख दी है और कर्णप्रावरण से आगे आठ सौ पोजन लघणसमुद्र में जाने पर विद्यहन्त द्वीप है. 'घणदंताईणं जाव गोषणस्थाह' इसी तरह उल्कामुखादि चार ચરમાન્ડથી બ્રુિત્ત નામના ચાર દ્વીપ છે. તે બધા આ જનની લંબાઈ પહેળાઈ વાળા છે. તે દરેકની પરિધિનું પ્રમાણ ૨૫૨૯ બે હજાર પાંચ ઓગણવીસ જનનું છે. તે બધા દ્વીપ પણ પદ્વવર વેદિકા અને વનખંડથી ' શોભાયમાન બાહાપ્રદેશો વાળ છે જંબુદ્વીપની વેદિકાના અંતથી તેમનું અંતર આઠસે જનનું છે. આ રીતે અશ્વકથી આગળ ઉત્તર પૌરરત્યાદિ ચરમાતથી આઠ જન લવણ સમુદ્રમાં જવાથી મેઘમુખ દ્વીપ આવે છે. અકર્ણ દ્વીપની આગળ આઠસો જન લવણ સમુદ્રમાં જવાથી વિદ્યમુખદ્વીપ આવે છે અને કર્ણપ્રાવરણદ્વીપથી આઠ પેજન લવણ સમુદ્રમાં જવાથી વિદ્યન્ત નામને દ્વીપ આવે છે. 'घणदताईणं जाव णव जोयण सयाई' भन्द शत भुम विगेरे
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy