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________________ प्रमैयद्योतका टीका प्र.३ उ.३ २.४२ एको० डिवडमर-कलहादिनिरूपणम् ६६७ मार्यमाणमारकमावेन युद्धम् 'महासंगामाइ वा' महासंग्रामा:-चेटककोणिकयोरिव रथमुशलसंग्रामरूपः, 'महासत्थनिवडाइ वा महाशस्त्रनिपतनमिति वा, महाशस्त्राणि वक्ष्यमाणानि नागवाणादीनि तेषां निपतनम्, महाशस्त्रत्वं च नागवाणादीनां विचित्रशक्तिमत्त्वात्, 'महापुरिससंगाहाइ वा महापुरुषसन्नाह इति वा, महापुरुषाणां वासुदेव बलदेव चक्रवादीनां सन्नाहः कवचादिना सज्जीभवनमिति, 'महा रुधिरपडणाइ वा महारुधिरपत्नमिति बा, युद्धादौ बहुरुधिरस्य पतनमिति, तथा-'नागावाणाइवा' नामवाण इति वा नामरूपो वाणस्तथाहि-नागवाणो धनुपि ही रहित होते हैं 'अस्थि णं भंते' एगोरुय दीवे दीवे महाजुद्धाहवा महासंगामाइवा महासस्थनिवडणाइवा' हे भदन्त ! एगोरुक द्विप में आपस में मारने की भावना वाला युद्ध महायुद्ध होता है। क्या ! महासंग्राम चेटक और कोणिक का रथमुसलसंग्राम जैला सुव्यवस्थित महासंग्राम होता है क्या? महाशस्त्रनिपतन नागवाण आदि जो आगे कहे जायेंगे उन महाशस्त्रों का एक दूसरे के उपर गिराने का प्रयोग किया जाता है क्या? ये नागवाण आदिकों को जो महाशस्त्र कहा गया है वह उनकी विचित्र शक्ति सत्ता को लेकर कहा गया है। 'महापुरिस लंणाहाइ वा' महपुरुष जो चक्रवर्ती वासुदेव बलदेव आदि है उन महापुरुषों के कवच आदि से सज्जित होना होता है क्या ? 'महारुधिर पडणाद वा' युद्ध में महारुधिर का गिरना होता है ? 'नागवाणा वा नागवाणों का उपयोग किया जाता है क्या? यह नाशवाण जय धनुप पर आरोपित किया जाता है तब तो इसका वाण जैसा ही आकार रहता है और जव यह धनुष पर चढाकर छोडा जाता है । तब यह जाज्वल्य मान काय छे. 'अस्थि णं भते ! एगोरुय दीवे दोवे महाजुद्धाइवा, महासगामाइवा, महासत्थनिवड़णाई वा' 8 लगवन् मे है।३४ द्वीपमा ५२२५२ने भारपानी भावना વાળું યુદ્ધ કે મહાયુદ્ધ થાય છે? મહા સંગ્રામ-એટલે કે ચેટક અને કણિકના રથમુશલ સંગ્રામ જે મહા સંગ્રામ થાય છે ? મહાશસ્ત્રનિપાત-નાગબાણ વિગેર કે જે હવે પછી કહેવામાં આવશે તે મહાશત્રે એક બીજાના પર મારવા રૂપ પ્રાગ કરવામાં આવે છે? ખાણ વિગેરેને જે મહાશસ્ત્ર કહેવામાં આવ્યા छ. ते तना वियित्र शठितमत्तान छन छ'महापुरिस सणाहाइवा' મહાપુરૂષ વાસુદેવ બલદેવ ચકવતી વિગેરે કહેવાય છે. તેવા મહાપુરૂષોનું કવચ विश्था सा थवान थाय छ ? 'महारुधिरपडणाइवा' युद्धमा महाधिर ५४ानु थाय छ ? 'नागवाणाइवा' नाग मायने ५या ४२वाम मावे छे. १ આ નાગબાઇ જ્યારે ધનુષપર આરોપિત કરવામાં આવે છે, ત્યારે તેને આકાર બાણ જેજ ફેર છે, અને જયારે તેને ધનુષ પરથી છોડવામાં આવે
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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