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________________ जीवाभिगमसूत्रे २२ - एतस्या रत्नप्रमाया पृथिव्याः 'आहे' अधा-अधोभागे 'घणोदही वा' घनोदधिरिति वा घनः कठिनीभूत उदधिः- उदक समूह इति घनोदधिः सकिमेतस्याः प्रत्यक्ष उपलभ्यमानाया रत्नमभायाः पृथिव्या अधोभागे विद्यते किम् ? 'घणवाएइ वा' घनवात इति वा, घनः पिण्डीभूतो वायुरिति घनवातः स चास्यावो विद्यते किम् ? 'तणुवाएइ वा' तनुत्रात इति वा 'ओवासंतरे वा' अवकाशान्तरमिति अवकाशान्तरं शुद्धं गगनं तदस्या अधो- विद्यते किमिति प्रश्नः भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'हंता अस्थि' इन्त अस्ति हे गौतम! रत्नमाया बोमागे घनोदधिरप्यस्ति घनत्रातोऽपि विद्यते तनुवावोऽपि विद्यते अवकाशान्तरमपि विद्यते एवेति भावः । ' एवं जात्र अ सतमाए' एवं रत्नप्रमाया अधोभागे यथा घनोदधि प्रभृतयः सन्ति तथैव यावच्छर्कराप्रभा वालुकाप्रभा, भंते! इमी से रयणपभाए- पुढवीए अहे घणोदहौवा घणवाएर वा तणुवाद वा ओबासंतरेह वा १ ॥ हे भदन्त ! इस रत्नप्रभा पृथिवी के अधोभाग में घनोदधि, है क्या ? घनवात है क्या ? तनुवात है- क्या ? अवकाशान्तर शुद्ध आकाश है क्या ? कठीन भूत उदक का नाम घनोदधि है पिण्डी भूत वायु का नाम घनवात है । इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री कहते है - 'गोपमा । हंता, अस्थि' हे गोतम ! इस रश्नप्रभा पृथिवी के अधोभाग में घनोदधि भी है। घनवात भी है । तनुवात भी है और अवकाशान्तर - शुद्ध आकाश भी है ' एवं जाव अहे सत्ताए' इसी प्रकार का घनोदधि आदि के अस्तित्व का कथन 'यावत् तमस्तमः प्रभा पृथिवी के अधोभाग तक में जान लेना चाहिये । यास्पद से रत्नप्रभा के अधोभाग में घनोद्धि आदि का सद्भाव प्रकट किया है उसी प्रकार से शर्करा प्रभा के अधोभाग में वालुका प्रभा के रयणमा पुढवीए अहे धगोदहोइवा, घणत्राएइवा, तणुत्रापइवा, ओवासंतरेइवा' हे भगवन् मा रत्नप्रला पृथ्वीना नायेता लागमां धनाहधी के શુ? ઘનવાત છે શું ? તનુવાત છે? અવકાશાન્તર શુદ્ધ આકાશ છે? કઠેબ્રુ અનેલા પાણીનું નામ નેાધિ છે. પિંડાકાર થયેલ વાયુનુ નામ ઘનવાત છે. सा प्रश्नना उत्तरमा अनु है 'गोयमा! हंता अस्थि' हे गौतम! भा રત્નપ્રભા પૃથ્વીની નીચેના ભાગમાં ઘનેદિધપણુ છે, ઘનવાતપણ છે તનુત્રાત पशु छे, भने सुवाशान्तर शुद्ध आभिशपथ छे. 'एवं जाव अहे सत्तमाए ' ધનેકવિ વિગેરેના અસ્તિત્વનું કથન યાવત્ તમıમા પ્રમા પૃથ્વીના નીચેના ભાગ સુધીમાં સમજવું, અહિયાં યાવપદથી રત્નપ્રમા પૃથ્વીના નીચેના ભાગમાં નેઇષિ વિગેરેને સદ્ભાવ પ્રગટ કરેલ છે એજ રીતે શરાપ્રભા પૃથ્વીના
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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