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________________ • जीवाभिगमसूत्रे प्रसिद्धवृक्षो न ग्राह्यः अस्य एकास्थिकत्वात् अतः आमलकशब्देन बहुबीजवृक्षविशेषस्तदन्यो गृह्यते (लकुच) (वडहल) इति प्रसिद्वो गृह्यते, अयमपि बहुवीजवृक्षविशेषः, 'जे यावन्ने तह पगारा' ये चान्ये तथाप्रकारा. कपित्थादि सदृशा वृक्षा उपलभ्यन्ते तेऽपि बहुवीजवृक्षतयैव प्रतिपत्तव्याः । 'एएसि णं मूलावि असंखेज्जजीविया जाव फला बहुवीयगा' एतेषाम् अस्थिकतेन्दुकादीनां वृक्षाणां मूलान्यपि असंख्येयजीवाधिकरणानि भवन्ति यावत्पदेन कन्दादारभ्य पुष्पपर्यन्ता. संगृह्यन्ते ते पूर्ववद् वाच्यानि, तथाहि-कन्दादयः प्रवालान्ता असंख्येयजीवा भवन्ति, पत्राणि प्रत्येकजीवानि “से तं बहुवीयगा' ते एते बहुवीजका वृक्षा. कथिताः । ‘से तं रुक्खा' ते एते वृक्षाः सामान्यतः कथिता इति । 'एवं जहा "धवे" धव नाम का वृक्ष विशेप भी बहुवीज वृक्ष है । यहां आमलक शब्द से लोक प्रसिद्ध आमले का वृक्ष नहीं लिया जाता है क्योंकि यह एकास्थिक-एक वीज वाला होता है । यह आमलक एक बहुवीज वृक्ष विशेष है। इसी प्रकार लकुच शब्द से लोकप्रसिद्ध (लीची) नाम के फल वाला वृक्ष नहीं लिया जाता है लकुच को बडहल कहते हैं अतः यहां बडहल नाम का वृक्ष लिया जाता है। इसी प्रकार "जे यावन्ने तहप्पगारा" जो और भी इन्हीं वृक्षों के जैसे वृक्ष होते है वे सब भी बहुबीज वृक्षो में गिने गये हैं “एएसि मूला वि अस खेज्जजीविया जाव फला बहुवीयगा" इन बहुबीज वृक्षो के मूल असंख्यात जीवों से अधिष्ठित होते है यावत् इनके फल बहुत बीज वाले होते है । यहां यावत्पद से कन्द से लेकर प्रवाल पर्यन्त-कन्ट, स्कन्धत्वक्, शाखा प्रवाल तक - के पद गृहीत हुए है । अतः ये सब असंत्यात जीव वाले होते हैं और पत्र एक जीव वाले होते हैं। ‘सेत्तं बहुवीयगा" इस प्रकार से ये वहुबीन वृक्ष कहे गये है। ‘से तं रुक्खा,, दोनो प्रकार के वृक्षों का भेद બહબીજવાળા હોવાથી બહબીજક કહેવાય છે અહિયાં આમલક એ શબ્દથી લેક પ્રસિદ્ધ આમળાનું ઝાડ ગ્રહણ કરેલ નથી. કેમ કે તે એકારિક-એક બીજવાળા હોય છે આ આમલક તે એક બહુબીજવાળું વૃક્ષ વિશેષ છે એ જ પ્રમાણે લકુચ શબ્દથી લેકપ્રસિદ્ધ લીચી' નામના ફલવાળાવૃક્ષને થડણ કરેલ નથી લકુચને બડહલા કહે છે. તેથી અહિયાં 'सन्य' ५४थी मडस नामतु वृक्ष यड ४२६ छ । प्रमाणे "जे यावन्ने तहप्पજાનr” બા ઉપર વર્ણવેલ વૃક્ષો સિવાયના બીજા જે આ વૃક્ષોના જેવા વૃક્ષો હોય છે તે मधा परजी वृक्षामा गणता छ "एपसि मूलावि असंखेज्जीजविया जाव फला बहुवीयगा" मा मीपणा साना भूण मसच्यात वाथी व्याप्त डाय छे यावत् તેને ફલે બહુ બીજવાળા હોય છે અહિયાં ચાવતુ પદથી કદથી લઈને પ્રવાલ પર્યંત २४३, २४५, १ (छ) मा (ख) प्रवास (५५) सुधीन। पहे। यह राय छे. तेथी से था सस च्यात् य छ भने पान ४ वाणा हाय छे “से बहुवीयगा" 407 ॥ गई frain वृक्षनु ४थन युछे “से तं रुक्खा" मा રીતે એક બીજ, અને બહેબીજ બન્ને પ્રકારના વૃક્ષના ભેદ સાથે અહિયાં કથન
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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