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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० १ वनस्पतिकायिकानां शरीरादिद्वारनिरूपणम् प्रवाला असंख्येयजीवाः 'पत्ता पत्तेयजीवा' पत्राणि च प्रत्येकजीवानि - एकैकजीव विशिष्टानि भवन्ति 'पुप्फाई अणेगजीवाई' पुष्पाणि' अनेकजीवानि 'फला एगडिया' निम्नाम्रादिवृक्षाणां फलानि एकास्थीनि भवन्ति, एतेषां फले एकमेव बीजं भवति इति । 'से त्तं एगट्टिया' ते एते निम्बादयो वृक्षा एकास्थिका कथिता इति । 'से किं तं बहुवीया' अथ के ते बहुबीजा - अनेकबीजवन्तो वृक्षाः के इति प्रश्नः, उत्तरयति - 'बहुवीया अणेगविद्या पन्नत्ता' बहुबीजाः - अनेक बीजबन्तो वृक्षाः अनेकविधाः - अनेकप्रकारा प्रज्ञप्ताः-कथिताः । ' तं जहा ' तथा 'अस्थिय तेंदुय उंबर कविट्ठे' अस्थिकः तेन्दुकः उदुम्बर. कपित्थः सर्वे एते वृक्षविशेषा. लोकप्रसिद्धाः 'आमलगफणसदाडिमणग्गोधकाउंवरी यतिलयलउयलोद्धे धवे' आमलकपनसदाडिमन्यग्रोध काकोदुम्बरीय तिलकलकुचलोध्रा धव.. ते इमे बहुबीजवृक्षविशेषा 'लोकप्रसिद्धाः अत्र आमलकशब्देन 'आमला' इति लोक त्वचा शाखा, प्रवाल (कोपल ) ये सब असंख्यात जीवो वाले होते हैं । और 'पत्ता पत्ते य जोवा' इनके पत्ते प्रत्येक जीव वाले होते है अर्थात् इनके एक २ पत्र में अलग २ एक-एक जीव होता है ऐसे होते हैं । तथा - " पुफ्फाई अणेगजीवाई" पुष्प अनेक जीवो से युक्त होते है । " फली एगट्टिया" इनके फलो में केवल एक गुठली होती है "सेत्तं एगट्टिया', गये है " से किं तं बहुवीया" हे 1 इस प्रकार से निम्न आदि वृक्ष भदन्त । बहुवीज वृक्ष कोन २ से है बहुवीज वृक्ष अनेक प्रकार के कहे गये है एकास्थिक कहे गौतम 1 । " बहुवीया अणेगविहा पन्नत्ता " "तं जहा " जैसे- 'अत्थिय तेदुंय अंवर कविट्टे" अस्थिक, तेन्दु ऊंवर कैथ । ये वृक्ष अनेक है जिनके फलोंमें अनेक बीज होते है । ऐसे इसी प्रकार से आमलक, पनस दाड़िम-अनार न्यग्रोध-वट का वृक्ष काकोदुम्बरीय, तिलक, लकुच और लोध्र ये सब वृक्ष भी बहुबीजक वृक्ष हैं । तथा 1 १५७ वृक्षोना हुन्छ, २४ध, (श्रड) त्वया (छात्र) शाखा (डाज) प्रवाज (यज) मा अधा असभ्यात वो वाजा होय छे तेभन "पत्ता पत्तेय जीवा" तेना पत्र-पान प्रत्येक वाजा होय છે. અર્થાત્ તેના એક એક પાનમાં જૂદા જૂદા એક એક જીવા હાય છે તેવા હોય છે. "फली पगडिया" तेना इणेोभां डेवलमेन गोहूसी - मी होय छे तथा 'पुप्फाई अणेग जीवाई" तेना पुष्पा पा होय हे "से त्तं गडिया" भी प्रभारी श्रीभडाना વૃક્ષ વિગેરેને એકસ્થિક કહ્યા છે. "से किं तं बहुवीया" हे भगवन् महुमीवाणा वृक्षो ४था हुया हे ? 'गोयमा हे गीतभ | बहुचीया अणेगविद्या पन्नत्ता" महुणी वाणा वृक्षो गने अमरना महेला छे. "तं जहा " ते या प्रभाषे छे-“अस्थिय तेंदुय, उंवर कविट्ठे" गस्थि ति हुआ, उभरडो, अंडा વિગેરે. આ વૃક્ષો જેના ફળામા અનેક બીજો હોય છે તેવા એટલે કે અનેક ખીવાળા હોય छे. मे ४ प्रभा तेना नेवा महुमीनवाणा आभा, पनस, (इएस) हाउभ, अनार (द्राक्ष) वस्तु आउ अदुभ्रीय, (वृक्षविशेष) तिसङ, सय, भने बोध (शहडो) मा गधा वृक्षो
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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