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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० १ वनस्पतिकायिकानां शरीरादिद्वार निरूपणम् १५९ " पण्णवणार तहा भाणियव्वं जाव जे यावन्ने तह पगारा से तं कुहणा' एवं यथा-येन रूपेण प्रज्ञापनायां भेदास्तथा भणितव्या, कियत्पर्यन्तं तत्राह - ' जाव' इत्यादि, 'जाव जे यावन्ने तहपगारा से तं कुहणा' यावत् अत्र यावत्पदेन गुच्छ गुल्मलताचल्ली पर्वकतृणवलयहरितौषधिजलरुहाणां संग्रहो भवति एतेषां वृक्षगुच्छ गुल्मादीनां सविस्तरं वर्णनं प्रज्ञापनायाः प्रथमपदे विलोकनीयम्, ये चान्ये तथाप्रकाराः गुच्छ गुल्मादिसदृशाः प्रत्येकशरीग्बादरवनस्पतिकायिका भवेयु स्तेऽप्यत्र संग्राह्या । 'सेत्तं कुहणा' कुहणा प्रकरणान्तं वक्तव्य - मिति । एषां प्रत्येकशरीरवादरवनस्पतिकायिकानां कीदृगं संस्थानमिति प्रश्न, उत्तरयति गाथाभिः - 'णाणाविहसंठाणा' इत्यादि 'णाणाविहसंठाणा रुक्खाणं' नानाविधसंस्थानानि - अनेकप्रकारकाणि संस्थानानि भवन्ति वृक्षाणामिति, 'तालसरलना लिएरीणं' तालसरलनारिकेलीनां वृक्षाणाम् ' एगजीवया पत्ता ' पत्राणि एकजीवानि पत्राणाम् एक एव जीवो भवतीत्यर्थ' । 'खंधा वि एगजीवा' स्कन्धा अपि एक जीवाः, केषामित्याह - 'तालसरलनालिएरीणं' तालसरलनारिकेलानाम् एषां वृक्षे एकजीवस्तदीयस्कन्धोऽपि सहित स्वरूप यहाँ तक प्रतिपादित हुआ है । 'एवं जहा पण्णवणाए तहा भाणियव्वं जाव जे यावन्ने तहप्पगारा सेत्तं कुहणा" इस प्रकार इनके प्रज्ञापना सूत्र में सविस्तर भेद कहे गये है सो गुच्छ गुल्मलता वल्ली पर्वक तृणवलयहरित ओषधि जलरुह हणा कुप्रकरण तक के वे सब भेद यहां पर भी कह लेना चाहिए । इसी प्रकार इन्हीं वृक्षो के सदृश और भी जो वृक्ष वे सब इन्हीं प्रत्येक शरीर वनस्पतिकायिक वृक्षों में गर्भित कर लेना चाहिए " णाणाविहसंठाणा रुक्खा णं" इन वृक्षजीवों के संस्थान अनेक प्रकार के होते हैं । 'एगजीविया पत्ता" इन वृक्षों के पत्ते एक जीव वाले कहे गये हैं । अर्थात् हर एक वृक्ष का जुदा २ एक २ जीव होता है । 'खंधा वि एगजीवा " स्कन्ध में भी एक जीव होता है किन वृक्षो का सो कहते हैं "ताल सरलनालिएरीएणं" ताल सरल नारिकेल । इन वृक्षों का उयु छे " एवं जहा पन्नवणार तहा भाणियव्वं जाव जे यावन्ने तह पगारा से तं कुहणा" आ प्रमाणे या वृक्षाना लेहो प्रज्ञापनासूत्रमां सविस्तर रीते आहेस छे, ते लेहेो गुच्छ, शुभ, सता, वहसी, पर्व, तृणुवलय हरित योषधी, नस३ड, हुडा, ना પ્રકરણ સુધીના તે બધા જ ભેદો અહિયા પણ સમજી લેવા આજ રીતે આ વૃક્ષાની સરખા ખીજા પણ જે વૃક્ષો હાય તે બધા આજ વૃક્ષાની તુલ્ય પ્રત્યેક શરીર વનસ્પતિકાય વૃક્ષામાં समावेश हरी सेवा. ' णाणाविहसंठाणा रुक्खाण" मा" वृक्ष३ची वनस्पतिप्रय लवोनु संस्थान भने अारनु होय छे "एगजीविया पन्नत्ता" या वृक्षाना पान मे कवराजा उद्या छे. अर्थात् हरे वृक्षोना यानमा हा ही मेड़ से लव होय छे, “खंधा वि गजीचा' मां पशु मेडल होय छे. या वृक्षाना धभां थे लव होय हे ?
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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