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________________ मदीश्वर पूजा। ओं ह्रीं श्रीनन्दीश्वरद्वीपे कामयाण विध्वंसनाय पुष्पं ॥४॥ नेवज इन्द्रियबलकार, सो तुमने चूरा। चरु तुम ढिग सोहै सार, अचरज है पूरा आनन्दी॥ __ओं ह्रीं श्रीनन्दीश्वरद्वीपे क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य ॥५॥ दीपककी ज्योति प्रकाश, तुम तनमांहिं लसै॥ टूट करमनकी राश, शानकणी दरसे ॥ नन्दी० ॥ ___ओं ह्रीं श्री नंदीश्वर द्वीपे मोहान्धकार विनाशनाय दीपं ॥६॥ कृष्णागरुधूपसुवास दशदिशिनारि वर । अति हरषभाव परफाश, मानों नृत्य करें ॥ नन्दी० ॥ ॐ ह्रीं श्रीन दीश्वरद्वीपे अष्टकर्मदहनाय धूपं ॥७॥ बहुबिधफल ले तिहुंकाल, आनद रावत हैं। तुम शिवफल देहु दयाल, तो हम जावत हैं ॥ नन्दी० ॥ ॐ ह्रीं श्रीनन्दीश्वरद्वीपे मोक्षफलप्राप्तये फल ॥८॥ यह अरघ कियो निज हेत, तुमको अरपत हों। 'द्यानत' कीनो, शिवखेत, भूप समरपत हों। ॐ ह्रीं श्रीन दीश्वरद्वीपे अनर्घ्यपदप्राप्तये अभ्यं ॥2॥ । अथ जयमाला। दोहा-कार्तिक फागुन साढ़के, मत आठ दिनमाहि । - नदीसुर सुर जात हैं, हम पूजे इह ठाहि ॥ १॥ एकसौ सठ कोड़ि जोजनमहा। लाख चौरासिया एक दिशमें लहा ॥ आठमों द्वीपे नंदीश्वरं भास्वर'। भौन बावन्न प्रतिमा नमो सुखकर ॥ २॥ चारदिशि वार अंजनगिरी राजहीं। सहस चौरासिया एकदिश छाजहीं। दोलसम गोल अपर तले सुदर।
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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