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________________ ३५० जिनवाणी संग्रह। (७०) श्रीनन्दाइकर पूजा। अडिल्ल-सरब परबमें बड़ो अठाई परव है। नंदीश्वर सुर जाहिं लेय वसु दरब है । हमें सकति सो नाहिं इहां करि थापना । पूजों जिनगृह प्रतिमा है हित आपना ॥१॥ ओं ह्रीं श्रीनन्दीश्वरद्धोपेद्विपंचाशजिनालयलजिनप्रतिमासमूह । अत्र अवतर अवतर । संवौषट्, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। अत्र मम सनिहितो भव भव । वषट् । कंचनमणिमय भृगार, तीरथनीरभरा। तिधार दयो निरवार, जामन मरन जरा । नंदीश्वर श्रीजिनधाम, बावन पुंज करों। वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनदभाव धरों ॥१॥ ओं ह्रीं श्रीनन्दीश्वरद्धीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणे द्विपञ्चासजिनालयस्थजिनप्रतिमाभ्यो (इतना मंत्र प्रत्येक अष्टकके अंतमें बोलना चाहिये) जन्मजरागृत्युविनाशनाय जलं निर्मपामोति स्वाहा ॥१॥ भवतपहर शोतलवास, सो चंदननाहीं। प्रभु यह गुन कीजे सांच, आयो तुम ठाहीं ॥नंदी०॥ ओ ह्रीं श्रीनन्दीश्वरद्वीपे भवाताप विनाशनाय चंदनं ॥२॥ उत्तम अक्षत जिनराज, पुज धरे सोहें। सब जीते अक्षसमाज; तुम सम अरुको हैं ॥ नंदी० ॥ ओं ह्रीं श्रीनन्दीश्वरद्वीपे अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् ॥३॥ तुम कामविनाशक देव, ध्याऊं फूलनसौं । लहिं शील लच्छमी एव, छूटें सूलनसौं भनंदी०॥
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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