SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निश्चय और व्यवहार दिगम्बर जैन समाज में निश्चय और व्यवहार आज के बहुचर्चित विषय हैं । नयों के नाम पर आज जो भी चर्चा होती है उसमें निश्चय और व्यवहार ही मुख्य विषय रहते हैं। निश्चय और व्यवहार आज शास्त्रीय चर्चा के ही विषय नहीं रहे हैं, अपितु उनके नाम पर पार्टियाँ भी बन गई हैं। शिविरों की चर्चा भी आज जन-साधारण के द्वारा निश्चय और व्यवहार के नाम से की जाने लगी है। यहाँ निश्चय वालों का शिविर लगा है, वहाँ व्यवहार वालों का - इसप्रकार की चर्चा करते लोग आपको कहीं भी मिल जावेंगे। इसमें कोई सन्देह नहीं कि जो चर्चा कभी विद्वानों की गोष्ठियों तक में न होती थी, वह आज जन-जन की वस्तु बन गई है - इसका एकमात्र श्रेय यदि किसी को है तो वह श्री कानजी स्वामी को है, जिन्होंने जनोपयोगी जिनागम की इस अद्भुत प्रतिपादन शैली को घर-घर तक पहुंचा दिया है। यद्यपि निश्चय-व्यवहार की शैली में निबद्ध जिनागम का अध्ययन, मनन और चर्चा आज सारा समाज करने लगा है, यह एक शुभ लक्षण है; तथापि एक अशुभ प्रवृत्ति भी इसके साथ पनपने लगी है। वह यह है कि यह कलहप्रिय दिगम्बर जैन समाज पहिले से ही गाँव-गाँव में अपने व्यक्तिगत राग-द्वेषों के कारण गुटों में विभक्त है और निरन्तर किसी न किसी बात को लेकर लड़ता-झगड़ता रहा है । अब वे ही गुट निश्चय-व्यवहार के नाम पर भी लड़ने-झगड़ने लगे हैं और अपनी व्यक्तिगत कषायों को निश्चय-व्यवहार के नाम से व्यक्त करने लगे हैं तथा कुछ निहित स्वार्थी लोग निश्चय-व्यवहार की तात्त्विक चर्चा को सड़कों पर लाकर उत्तेजना फैलाकर अपने स्वार्थ की सिद्धि में संलग्न हो गए हैं। जन-सामान्य तो अभी निश्चय-व्यवहार का सही स्वरूप समझ नहीं पाया है, अतः उन्हें भड़काने में इन्हें कभी-कभी और कहीं-कहीं सफलता भी मिल जाती है। समाज में शांति बनी रहे और निश्चय-व्यवहार शैली में निबद्ध जिनागम का मर्म जन-जन तक पहुंच सके, इसके लिए निश्चयव्यवहार नयों का स्वरूप सम्पूर्ण समाज समझे- यह बहुत जरूरी है। जिनागम की यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण निर्विवाद प्रतिपादन-शैली व्यक्तिगत
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy