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________________ नय का सामान्य स्वरूप ] यहाँ एक प्रश्न संभव है कि जब नय श्रुतज्ञान के भेद हैं तो फिर वे वचनात्मक कैसे हो सकते हैं ? श्रुत को भी द्रव्यश्रुत और भावश्रुत के भेद से दो प्रकार का माना गया है। प्राचार्य समन्तभद्र ने श्रुतज्ञान को स्याद्वाद शब्द से भी अभिहित किया है।' मति आदि पाँच ज्ञानों में नय श्रुतज्ञान में और प्रत्यक्ष, स्मति आदि प्रमाणों में आगमप्रमाण में आते हैं । आगम को द्रव्यश्रुत भी कहते हैं । द्रव्यश्रुत और भावश्रुत के समान नयों के भी द्रव्यनय और भावनय - ऐसे दो भेद किये गए हैं। पंचाध्यायीकार लिखते हैं :"द्रव्यनयो भावनयः स्यादिति मेदाद् द्विधा च सोऽपि यथा। पौगलिकः किल शब्दो द्रव्यं भावश्च चिदिति जीव गुरगः ॥२ यह नय द्रव्यनय और भावनय के भेद से दो प्रकार का है। पौद्गलिक शब्द द्रव्यनय हैं और जीव का चैतन्यगण भावनय है।" अतः नयों के वचनात्मक होने में कोई विरोध नहीं है। न्यायशास्त्र के प्रतिष्ठापक आचार्य अकलंकदेव नय को प्रमाण से प्रकाशित पदार्थ को प्रकाशित करने वाला बताते हैं : "प्रमाणप्रकाशितार्थ विशेषप्ररूपको नयः । प्रमाण द्वारा प्रकाशित पदार्थ का विशेष निरूपण करनेवाला नय है।" नयचक्रकार माइल्लधवल भी लिखते हैं :"गाणासहावभरियं वत्थु गहिऊरण तं पमाणेण । एयंतरणासरगट्ट पच्छा रणयजुजरण कुरगह ॥ अनेक स्वभावों से परिपूर्ण वस्तु को प्रमाग के द्वारा ग्रहण करके तत्पश्चात् एकान्तवाद का नाश करने के लिए नयों की योजना करनी चाहिए।" धवलाकार तो नयों की उत्पत्ति ही प्रमाण से मानते हैं । अपनी बात सिद्ध करते हये वे लिखते हैं :' प्राप्तमीमांसा, श्लोक १०५ २ पंचाध्यायी पूर्वाद्ध, श्लोक ५०५ तत्त्वार्थराजवार्तिक, म० १, सूत्र ३३ द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र, गाथा १७२
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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