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________________ "नेमिनाथ लेख गीतं २०१ दरसण दीजइ रे प्रीतम करि मया, जिम मुझ नइ सुखथाइ | या० जीव सहूना रे पालक तुम्हे थया, तर कांड परिहरि रे जाइ || जे सुकुलीणारे कुल किम लाजवइ, पालइ पूरि रे प्रीति । या० । लीया मुकी रे ते न करड़ कदी, एह सुगुण नी रे रीति ॥ या० एकर सं मिलि आवी प्रीतमा, मन ना पूगइ रे कोड । या० । मुखड़ा देखुरे वाल्हा ताहरउ, भाजइ भाहरी रे खोड़ि ॥ या० ॥ अहनिसि आपणसु राता रहा, हीयड़ा राखइ रे ध्यान | या०|| ते किम साजन सेण उवेखीयइ, दीजइ विमणउ रे मान । या० ॥ तुमे माहरा सिरना रे साहिब सेहरा, आतम तणा रे आधार । या० हीयइ राखुं रे हारतणी परह, तुम्हे माहरा सहु सिणगार | या० सेज सुहाली रे प्रीतम पोढ़ीयह, करीये मननी रे वात । या० ॥ दाखवीयइ निज सुख दुख तुम भणी, टाढउ थाये रे गात । या० सूता सुपना मां आवी मिलह, जउ जागुं तउ रे जाई ॥ या०२ १ 1 टलवलतां इणि परि प्रीतम पखर, रयणि छमासी रे थाइ | या० लागी प्रीतम प्रीति न तोड़िये, मोटा नइ छह रे खोड़ि । या० कतुआंरी नारी ना सूत्र ज्यु, जिम तिम लीजइ रे जोड़ि | या० कीजड़ तर प्रीतम करि जाणीये, सुगुणा सेतीरे संग || या० ॥ लाखी जउ चीरी हुइ लोवड़ी, तर ही न छोड़ई रे रंग | या० । हुँ तुझ पगनी रे प्रीतम पानही, केहउ मुझमा रे दोस । या० । 'आठ' भवां नी रे परिहरि" प्रीतड़ी, कां कीयउ इवड़ंड रे रोस । १ तुम मुझ ▾
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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