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________________ '२०२ जिन ग्रन्थावली 'तुमने स्युं लिखियड़ प्रीतम घणुं, लिखितां नावे रे पार । या० माहरी एहीज साहिब वीनती, मुझने लज्यो रे लार । या० । लेख लिख्यउ राजुल श्री नेमिनड़, लह्यां अविचल सुख संग | या०| कहे जिनहरप खरा साजन तिके, राखड़ साचउ रे रंग | या० । नेमि राजिमती गीत ढाल || उढोणी चोरी रे एहनी ॥ स्यु कीधउ इणि जादवड, मां मोरी रे | t तो फिर गयउ प्रीति लगाय । यादव दिल चोरी रे ॥ मन हरि लीघउ माहरउ मा मोरी रे, प्रीतम चिणि राउ न जाय । - इम बोले राजुल गोरी, या० इणि धूरत विद्या करी मा० विणि अवगुण कीधउ रोस । या० धूती मुझ धूतारड़ड़ मां० देह पसुआं सिरि दोष ॥२ या० ॥ निसनेही सुं नेहलउ । मा । कीजड़ तर दाझइ अंग । या० । दीवा के मन में नही । मा । एतउ पड़ि पड़ि मरड पतंग | या३ चाहता चाहे नही । मा । सांमलियउ कठिण कठोर ॥ या० ॥ एक पखी करी प्रीतड़ी। मा । लेई गयउ चित चोर । या० ४ y । सिगड़ी मेल्ही मुझ हीये । मा । दाझे मोरी कोमल देह ॥ या० ॥ चहन नही दिन रातड़ि | मा। सालइ निति हीयड़े नेह । या! | हुं प्रिउ विणि विरहिणी भई । मा । वाल्हह दीघउ अपमान । या० । मूल सरीखी सेजड़ी । मा । घर मन्दिर जाणे रान ॥ या० ६ ॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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