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________________ - जिनर्प-ग्रन्थावली १०६, अथ भाव महिमा कथन सवइया ३१ प्रसनचंद मुनीस संयम गहि जगीस, कंवली भयो है सब करम खपाइकै । इलापुत्र वंस परि खेले है हरख धरि, “ . केवल लडो सु परि ज्यांन मन लाइ कै । कूरगडू अणगार केवली कपिल सार, खंदक सुसीस अइसुकमाल भाइ कै । ददुर भयो देवेस दुरगता सरग लह्यो, भाव जिनहरख अचल होत जाइ कै ॥२०॥ ' अथ अल्प आयु कयन सवइया ३१ तेरी है अल्प आयु तू तो खेलता है डाव, जाणे है जीवन मेरो कबहुं न तूटैगो । यो तो है नदी का पूर दिन दिन घटै नूर, करत अकाज नहीं लाज कैसे छुटैगो । कंठगति प्राण तेरै हगे वल प्राण घेरे, आई जमरांण जब तोकू गहि कूटैगो । कहै जिनहरख न कोउ तेरो रखवाल, देखत ही काल ठाल काया कोट लूटैगो ।२१। अथ शिक्षा कथन सवइया ३१ । जागि रे अग्यानी जागि काहं माया सू लागि, रह्यौ है. जलत आगि मांहि क्रांहि दामे है।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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