SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८ उपदेश छत्तीसी वीरोचन तन तैं छुडाय दीयो विप्र सुत, दांन तै वढे हैं जिनहरख सनेह रे ||१७|| अथ सील महिमा कथन सवइया ३१ बैट को करईया महाजन को मरईया उपशम को हरईया क्रोध भयो ही रहतु है । तप को गमईया जांगे खांग को समईया नही, मौर ज्यु समईया श्रम खेध मै सहेतु हैं । तुष्ट को दमइया रंग रास को रमईया सब, नागर न मैया भया स्वईच्छा मैं तु हैं । सो दुराचारी मारी नारद लह है मोख, सील तैं सलिल जिनहरख कहते हैं || १८ || तप कथन सवइया ३१ सु दिढपहारी चोर महापातिकी अघोर, च्यार हत्या कीनी जोर साहुकार नंद जू । अर्जुन मालागार मोगर हथ्यार ग्रहि, पट नर नारि एक करति निकंद ज् । सौ महापापी दोउं तप तें तरे है सोउ, सेवै सुरनर हरकेसी कु आणंद जूं । विसनकुमर जिनहरख जोयण लाख, रूप कियौ तपहुं तै चाढ्यौ नाम चंद जूं |१६|
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy