SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [जिन सिद्धान्त दर्शनावरण, केवल दर्शनावरण, (५) निद्रा, (६) निद्रानिद्रा (७) अचला, (८) प्रचला-प्रचला, (६) स्त्यानगृद्धि । प्रश्न-ये नौ प्रकृति क्या दर्शन के विकास को रोकती हैं ? ___उत्तर-इन नौ प्रकृतियों में से प्रथम की चार प्रकृति दर्शन चेतना के विकास को रोकती हैं और पांच निद्रा की प्रकृतियाँ जो दर्शन चेतना प्रगट हुई है उसको रोकती हैं। शङ्का-पांच निद्रा की प्रकृतियों की प्रथम ज्ञानावरणकर्म में गिनती करने में क्या बाधा थी ? । ___ समाधान-ज्ञान दर्शन पूर्वक ही होता है, जिसने दर्शन चेतना को रोक दिया वहां जान चेतना तो स्वयं रुक जाती है । जिस कारण पाच निद्रा की प्रकृतियाँ दर्शनावरण कर्म में गिनी जाती हैं। प्रश्न-वेदनीय कर्म किसे कहते हैं ? __उत्तर--जो बाह्य में इष्ट-अनिष्ट सामग्री को मिला देवे और यदि मोह हो तो उस सामग्री में सुख दुःख का वेदन करावे उस कर्म का नाम वेदनीय कर्म है। प्रश्न---वेदनीय कर्म के किनने भेद है ?
SR No.010381
Book TitleJina Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulshankar Desai
PublisherMulshankar Desai
Publication Year1956
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy