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________________ [ जिन सिद्धान्त उत्तर -- क्षयोपशम भाव में होता है । जितने अंश में शुद्धता है उतने अंश में निश्चय धर्मध्यान है और जितने अंश में क्षयोपशम भाव में अशुद्धता है उतने अंश में व्यवहार धर्मध्यान कहा जाता है । प्रश्न -- क्षायिक भाव किसे कहते हैं ? उत्तर-उस भाव का नाम क्षायिक भाव है। प्रश्न -- क्षय किसे कहते हैं ? उत्तर -- जिनके मूल प्रकृति और उत्तर प्रकृति के मेद से प्रदेश बंध, प्रकृति बंध, स्थिति बंध, अनुभाग बंध का क्षय हो जाना, उसे क्षय कहते हैं । प्रश्न ---- क्षायिक भाव कितने प्रकार का है ? --कर्म के क्षय से आत्मा में जो भाव होता है। उत्तर -- क्षायिक भाव स्थान की अपेक्षा पांच प्रकार का और विकल्प की अपेक्षा से नौ प्रकार का कहा गया है । प्रश्न -- क्षायिक भाव नौ प्रकार का उपचार से कौन सा है ? उत्तर --- (१) क्षायिक सम्यक्त्व (२) क्षायिक चारित्र (३) नायिक केवलज्ञान (४) नायिक क्षायिक लाभ (६) क्षायिक दान (७) क्षायिक उपभोग (8) क्षायिक कार्य । केवलदर्शन (५) क्षायिक भोग (८)
SR No.010381
Book TitleJina Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulshankar Desai
PublisherMulshankar Desai
Publication Year1956
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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