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________________ पृष्ठ (२) पदसंख्या पृष्ठ पदसाख्या का कर आतमदिन १४५ खेलौगी होरी ३११ १६ कर रे कर रे कर रे तू मा० २९ ३१ कहत सुगुरु कर सुहित ५८ ३ गलतानमता कर आये. ५ ५३ कहिवेको मन सूरमा, कर०१०२/ ६८ गहु सन्तोष सदा मन रे १३३ ६. कहै राधौ सीता चलह० ११५१११६ गिरनारिप नेमि विराजत २२९ ६० कहै सीताजी सुनो रामच०११६ } २० गुरु समान दाता नहि. १८ ३५ कर सतसंगति रे भाई १२७११२३ गोतम खामी जी मोहि २५.१ ७४ कहुं दीठा नेमिकुमार १४५ घा ७५ कहें भरतजी सुन हो राम१४७४ २५ घटमें परमातम ध्याइये ४८ ८३ कर मन निज मातम० १५७ १०१ कहारी करौं कित जाऊ १८३/ ७ चल देस प्यारी नेमि० १३ १०४ कव हो मुनिवरको प्रत० १९२१२५ चल पूजा कीजे बनारस में २५४ १२७ करुना कर देवा २६११११८ चाहत है सुख पैन गाह०२३५ १३५ कहा री कहूं कछु कहत २८७ ४० चेतन खेले होरी ७६ १३७ कर मन वीतरागको ध्या० २९३] ६६ चैत रे प्रानी चेत रे तेरी०१२९ १४६ कर्मनिको पेलै ३१५, ७८ चेतन प्राणी चेतिये हो १५२ १५० कलिमें ग्रन्थ बड़े उपगारी ३१९/१०४ चेतन मान हमारी वति.१९१ ६ काहेको सोचत अति भा० ११.१०५ चेतन तुम चेतो भाई १९५ ३९ कारज एक ब्रह्म ही सेती ७५/१०६ चेतन जी तुम जोरत हो १९७ ९५ काया तू चल संग हमा० १७२/१११ चेतन मान ले बात हमा०२१३ ११३ काम सरे सब मेरे ॥ २२०/१४६ चेतन नागर हो तुम ३१६ ९८ किसकी भगति किये हि. १७६/१३८ चौवीसोंको वन्दना हमा० २९५ १५१ कीजे हो भाईयनिसों ३२० १२८ कोही पुरुष कनकतन की०२६५/ २ जानत क्यों नहिं रे २ १५३ क्रोध कषाय न मैं करों ३२१, ९ जगतमें सम्यक उत्तम भा० १५ १०७ कौन काम अब मैने की. २०१, ४६ जय जय नेमिनाथ प० ८८ १४९ कौन काम मैंने कोनो ३०४} ७० जव वानी खिरी गहा० १३८ -
SR No.010375
Book TitleJainpad Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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