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________________ - पृष्ठ पदसंख्या पृष्ठ पदसंख्या १३० जग ठग मित्र न कोय वे २७२/१०३ त्यागो त्यागो मिथ्यातम १८७ ११७ जानो धन्य सो धन्यसो० २३१/१०० त्रिभुवनमें नामी कर क. १७९ १२९ जाको इंद अहमिद भ० २७० १३ तुम प्रभु कहियत दीन द० २३ १४४ जानो पूरा ज्ञानी सोई ३०८ ३८ तुम ज्ञान विभव फूली ७३ ४ जिन नाम सुमर मन० ७.५९ तुमको कैसे सुख है मीत ११३ १२जियको लोभ महादुख० २१/१०९ तुम तार करुनाधार २०० १८ जिनके हिरदै भगवान ३३ / १२८ तुम अधमउधारनहार २६४ १९ जिनके हिरदै प्रभुनाम ३६] १४० तुम चेतन हो ३०२ ६२ जिनके भजनमें मगन० ११९) ५तू जिनवरखामी मेरा ८ ८९ जिनराय मोह भरोसो १६५/ २५ तू तो समझ समझ रै भाई ४७ ११० जिनवानी पानी जान लै २०९/१३९ तू ही मेरा साहिब सच्चा २९८ १११ जिन साहिब मेरे हो २१२/११३ तेरो संजम विन रे नरभव २२१ ११४ जिनरायके पाँय सदा २२२/१३६ तेरे मोह नहीं २९२ ११७ जिन जपि जिन जपि २३२/१४६ तेरी भगति विना धिक है ३१४ १२५ जिनवर मूरति तेरी, शो० २५७/११३ ते चेतन करना न करी रे २१९ १३२ जिनपद चाह नाहीं कोय २७८ १४० तें कहुं देखे नेमिकुमार ३०३ २७ जीवा शं. कहिये तने ५१ २८ जीव ते मूढपना कित० ५३, ३५ दरसन तेरा मन भावै ६७ ९६ जीव से मेरी सार न० १७३ १ १२३ दास तिहारो हूं मोहि० २५० ६६ जेन नाम भज भाई रे १२८ ९१ जैन धरम धर जीयरा १६७ १२२ दियें दान महा सुख पा० २४६ ५५ जो ते आतम हित नहि १०६/१०३ दुरगतिगमन निवारिये १८९ २३ देख्या मैंने नैमिजी प्यारा ४४ ८५ ९७ हटा सपना यह संसार १७५ ४४ देखो भाई श्रीजिनराज ४५ देखो भाई आतम वि० ८६ १०१ तजि जो गये पिय मोह १८१/ ४८ देखो भेक फूल ले नि० ९१ १२६ तारि लै मोहि शीतल० २५८ ५४ देखे सुखी सम्यक्रवान १०४ १२६ तारनको जिनवानी २५९ १०८ देखे जिनराज माज २०३ ।
SR No.010375
Book TitleJainpad Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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