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________________ - हजूरी प्रभाती पद-संग्रह १५ शीतल चरनकमलमैं, श्रेयांसके गैंडा वनचरू ।। चरनन०॥२॥ भैसा वासु, वराह विमलपद, अनंतनाथके सेहि पलं । धर्मनाथ कुस, शांति हिरन जुत, कुंथुनाथ अज, मीन असे ॥ चरन० ॥३॥ कलस मल्लि, कूरम मुनिसुव्रत नमि कमल सतपत्र तरूं । नेमि संख, फैनि पास बीर हरि, लखि बुधजनआनंदभरूं। चरनन ॥४॥ (२१) जिनमुख अनुपम सूर्य निहारत, श्रमतम दूर भगाया है । जिनमुख०॥ हितकर वचन-किरन श्रवननिघसि, भवि-मन कमल खिलाया है चक्रवाक आतमको चकवी, सुमतिसँयोग मिलाया है । जिनमुखः ॥ १॥ विनसी मोहनिशा दुखकारी, आतमज्ञान जगाया है । मिथ्या नींद मिटी प्रगटी अब,सम्यकरुचिसुख पाया है। जिनमुख० ॥ २॥ कुमति कमोदनि सकुचन लागी उडुगन कुनय छिपाया है। सहज सर्वहित १ वज्र । २ अरनाथके । ३ कछुवा ! ४ सर्प । ५ सिंह ! -
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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