SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - AA-A जैन पदसागर प्रथमभाग ॥ उठोरे०॥१॥ भववन चौरासी वीच, भ्रमतो फिरत नीच, मोह-जाल-फंद-फस्यो, जन्म मृत्यु पावोरे । उठोरे०॥२॥ आरज पृथ्वीमें आय, उत्तम नरजन्म पाय, श्रावककुलको लहाय, मुक्ति क्यों न जावोरे । उठोरे० ॥३॥ विषयनिमैं राचिराचि,बहुविधके पाप सांचि, नरकनिमैं जाय क्यों अनेक दुःख पावोरे । उठोरे०॥४॥ परको मिलाप त्यागि, आतमके जाप लागि, सुबुधि बतावै गुरु ज्ञान क्यों न लावोरे॥उठोरे०. (२०) राग भैरों। चरननचिन्ह चितारि चित्तमें, बंदन जिन चौवीस करूं ॥ चरनन० ॥ टेक ।। रिषभ वृषम गज, अजितनाथकै । संभबके पद बाजे, सरूं। अभिनंदन कपि, कोके सुमतिक, पैदम पदमप्रभ पायधरूं ॥ चरनन ॥१॥ स्वस्ति सुपारस, चंद चंदकै, पुष्पदंतपद मत्स्य वरू। सुरैतरु .१ घोड़ा । २ चकवा । ३ कमल । ४ साथिया । ५ मगर मच्छ । ६ कल्पवृक्ष । -
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy