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________________ हजूरी प्रभाती पद-संग्रह १३ तेरे.सव काज ॥ भोर० ॥ टेक ॥ धनसंपति मन बांछित भोग, सव विध जान बने संयोग । भोर० ॥१॥ कल्पवृक्ष ताके घर रहै,. कामधेनु नित. सेवा. बहै । पारस चिंतामनि समुदाय, हितसों आय मिलैं सुखदाय ॥ भोर० ॥२॥ दुर्लभतें सुलभ्य द्वैजाय, रोगसोग दुखदूरपलाय सेवा देव करें मनलाय, विधन उलटि मंगल ठहराय ॥ भोर० ॥३॥ डायनि भूत पिशाच न छले, राज चोरको जोर न चले। जस आदर. सौभाग्य प्रकाश, धानत सुरग मुकतिपदबास ॥ भोर०॥४॥ . (१६.) राग भैरों। · भोर भयो सब भविजन मिलिकर, जिनवर पूजन आवो (जावो)। अशुभ मिटाबो पुण्य बढावो, नैननि नींद गमावो । भोर० ॥ टेक ॥ तनको धोय धारि उजरे पट, शुद्ध जलादिक लावो । बीतराग छबि हरखि-निरखिकर,आगमोक्त गुनगावो। भोर०॥१॥ शास्तर सुनों भनो
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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