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________________ NAAD १२ जैन पदसागर प्रथमभाग करुणाकरवाई । ऋषभ० ॥४॥ अरह अरहविधि मल्लि मल्लिवर, मुनिसुव्रत मुनिसुव्रतदाई । नमि नमि सुरनरनेमि धरमरथ, नेमिप्रभू काटें भवकाई ॥ऋषभ० ॥ ॥ पास पास छेदी चळं गतिकी, महावीर महावीरवडाई । धानत परमानद-पद कारन, चौवीसी नामारथ गाई। ऋषभ०॥६॥ (१४) देखे जिनराज आज, राजरिद्धि पाई । देखे० ॥ टेक ॥ पहुपवृष्टि महाइष्ट देव दुंदुभी सुमिष्ट, शोक करै मृष्ट सो अशोकतरु बडाई ॥ देखे० ॥१॥ सिंहासनं झलमलात, तीन छत्र चितसुहात, चमर फरहरान मनों, भगति अति बढाई ॥ देखे०॥२॥ द्यानत भामंडलमें, दीसे पर जाय सात, बानी तिहुकाल झरे, सुरशिवसुखदाई ।। देखे०॥३॥ ..(१५) राग बसंत । भोर भयो भज श्रीजिनराज़ । सफल होहि
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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