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________________ १५ १३] स्वामी श्रीजिननाभिकुमार, हमको क्यों न उतारो पार सोमंधरखामी मैं वरननका चेरा : सुधि लीज्योजी म्हारी मोहि.भवदुखदुखिया जानके सुनकर पानी जिनवरकी म्हारै हरष हिये न समायजी . सुन निनवैन श्रवन सुख पायो । सोई है सांचा महादेव हमारा .. सो गुरुदेव हमारा है साधो . हरनाजी जिनरांज मोरी पीर हम आये हैं जिन भूप तेरे दर्शनको हम शरन गयो जिन चानको .. . हमको प्रभु श्री पासंसहाय हमारी वीर हरों भवपीर . . हे जिन तेरे मैं सरने माया . . है जिन तेरो सुजस उजागर गावत हैं मुनिजन हानी हे जिन मेरी ऐसी बुद्धि कीजे हे जिनरायजी मोहि दुखत लेहु छुड़ाय हो तुम त्रिभुवनतारी हो जिनजी, मो भवजलधि क्यों न तारत हो५१ हो जिनवाणीजू तुम मोकों तारोगी हो खामी जगतजलधित तारों ज्ञानो ज्ञानी ज्ञानी नेमजी तुम ही हो ज्ञानी ज्ञानी मुनि है ऐसे खामी गुनराल . १५३
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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