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________________ [१२] शिवमग-दरसावन रावरो दरस शेष सुरेश नरेश रहे तोहि, पार न कोई पर्विजी 3 S श्रीभरतछवि लखि हरिदै आनंद अनुन छाया है श्रीआदिनाथ तारन तरनं श्रीगुरु हैं उपगारी ऐसे वीतराग गुणधारी वे श्रीजिन तारनहारा थे तो मोने प्यारा लागो राज श्रीजिनदेव न छाड हो सेवा मनवचकाय हो श्रीजिनपूजनको हम आये, पूजत ही दुखद मिटाये श्रीमुनिराजन समतासंग, कायोत्सर्ग समाहित भंग श्रीजिनवर दरस आज करत सौख्य पाया स सब मिल देखो हेली म्हारी हे, त्रिशलापाल वदनरसाल सम-आराम बिहारी साधुजन, सम आराम बिहारी समत क्यों नहि बानी अज्ञानी जन ૨૭ ર १८ ' ८७ १५२ ११० ६२. २१-१०४ १५१ કુદ १५४ १३३ १७४ १३० १३० सम्यग्ज्ञान विना जगमें पहिचाननेवाला कोई नहीं सारद तुम परसाद आनंद उर आया सांची तो गंगा यह वीतरागवानी सांचे चंद्रप्रभू सुखदाय स्वामीजी तुम गुण अपरंपार चंद्रोज्वल भविकार स्वामीजी सांची सरन तिहारी स्वामी मोहि अपनो जान तारां, या विनतो अब वितधारो ६१. स्वामी रूप अनूप विशाल मन मेरे चलत ૬૭ 6३ ર
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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