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________________ श्रीवीतरागाय नमः । जैन-पद-सागर प्रथमभाग । ( १ ) ( हजूरी प्रभाती पद - संग्रह ) कप्रसाधन देखोजी आदीश्वर स्वामी, कैसा ध्यान लगाया है । कर ऊपर कर सुभग विराजे, आसन थिर ठहराया है | देखोजी० ॥ टेक ॥ जगतविभूति भूर्तिसम तजकर, निजानंद-पद ध्याया है । सुरभित श्वासा आशावासा, नासादृष्टि सुहाया, है | देखोजी० ॥ १ ॥ कंचन वरन चलै मन रंच न. सुरैगिरि ज्यों थिर थाया है । जासपास अहि मोर मृगी हैंरि, जातिविरोध नशाया है । देखोजी ० ॥ २ ॥ सुध उपयोग हुतासनमें जिन, .. १ । भस्मकी समान । २ दिशारूपी वस्त्र - दिगंबरपणा । ३ सुमेरु . पर्वत । १ सिंह |
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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