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________________ गुरुस्तुतिपद-संग्रह। १६१ ॥टेक ॥ मूसलधारसी धार पर है, विजुली कड़कत शोर करें है। भाई० ॥ १॥रात अँध्यारी लोक डर है, साधुजी अपने कम हरे हैं। भाई ॥२॥ झंझॉपवन चहूंदिश वाजें, वादर घूम धूम अति गाजै ।। भाई० ॥३॥ डसैं मशक बहु दुख उपराजें, धानत लाग रहे निज काजै ॥ भाई०॥३॥ .. मुनि वन आएं बना, शिवबनरी व्याहनकों उमगे, मोहित भविकजना ॥ मुनि० ॥ टेक॥ रत्नत्रय शिर सेहरा बांध, सजि संवर वसना। संग वराती द्वादश भावन, अरु दशधर्मपनाः ॥ मुनि०॥१॥सुमति नार मिलि मंगल गावत; अजपा गीत घना। रागरोपकी आतिसबाजी, छूटति अगनिकना ॥ मुनिः॥२॥ दुविधकर्मका दान वटत है, तोपित लोकमना । शुक्लध्यानकी अगनि जलांकर, होमैं कर्म धना ॥ मुनिः ॥३॥ १ बरसा सहित आंधी आनेको झंझावात कहते हैं।
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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