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________________ १३३ जिनवाणी स्तुति पद -संग्रह । बाढे, शिवआनंद फलदानी ॥ मेघघटा० ॥ २ ॥ मोहनवूल दबी सव यातें, क्रोधानल सु बुझानी ॥ मेघघटा० ॥ ३ ॥ भागचंद बुधजन केकीकुल, लखि हरखे चित ज्ञानी ॥ मेघघटा० ॥ ४ ॥ १२ । लावनी । धन्यधन्य है घड़ी आजकी, जिनधुनि श्रवन परी । तत्त्वप्रतीत भई अब मेरे, मिथ्यादृष्टि टरी ॥ धन्यधन्य० ॥ टेक ॥ जडतें भिन्न लखी चिन्मूरत, चेतन स्वरस भरी । अहंकार ममकार बुद्धि पुनि, पर मैं सब परिहरी ॥ धन्य धन्य० ॥ १ ॥ पापपुण्य विधिबंध अवस्था, भासी अति दुख भरी । वीतराग विज्ञानभावमय, परनति अति विस्तरी ॥ धन्य धन्य ॥ २ ॥ चाहदाह विनसी: बरसी पुनि, समतामेधझरीं । वाढी प्रीति निरा कुलपदसों, भागचंद हमरी ॥ धन्यधन्य० ॥३॥ - ( १३ ) : समझत क्यो नहिं वानी अज्ञानी जन ॥ समझत• ॥ टेक ॥ स्यादवाद अंकित सुखदायक,
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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