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________________ - 'जिनवाणीस्तुतिपद-संग्रह। १३१ शमदमकी ।। महिमा० ॥२॥कर्मबंधकी भई निर्जरा, कारण परंपराक्रमकी। भागचंद शिव लालचलाग्यो, पहुंच नहीं है जहं जमकी ॥ महिमा०॥३॥ . . ८। राग-सोरठ देशी। थांकी तो वानीमैं हो, जिन स्वपरप्रकाशकज्ञान । थांकी तो० ॥ एकीभाव भये जड चेतन, तिनकी करत पिछान ॥ थांकी तोगाशासकलं पदार्थ प्रकाशत जाम, मुकुर तुल्य अमलान ॥ • थांकी तो० ॥२॥ जगचूड़ामन शिव भये तेही, तिन कीनो सरधान ॥ थांकी तो० ॥३॥ भागचंद बुधजन ताहीका, निश दिन करत बखानं ॥थांकी तो०॥४॥ . ९ राग-सोरठ। ... म्हाकै घर जिनधुनि अब प्रगटी॥म्हाके घर० ॥ टेक ॥ जाग्रत दशा भई अब मेरी, सुप्त-दशा.. विघटी। जगरचना दीसत अब मोकों, जैसी.. रहँन्टघटी । म्हाकै घर० ॥१॥विभ्रम-तिमिर
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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